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*दादू साचे मत साहिब मिलै, कपट मिलेगा काल ।*
*साचे परम पद पाइये, कपट काया में साल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ काल का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
शूरातन का अंग (५)
शूर सिंह छेरे१ खाय तो सौं न कीजे उपाय२,
देखत विहंडि३ जाय सो न युद्ध कीजिये ।
दारू४ के भवन मांहि पावक ले संग जाँय,
तिनकी जु आश नांहि बादि५ ही जरीजिये ॥
हिम गिरि के लागि कोट देत हैं निशान६ चोट,
उबरहिंगे कौन ओट देखते गरीजिये ।
तैसी विधि ह्वै अयान७ साधु सौं न मांडि८ ज्ञान,
रज्जब की सुनहु कान चिंता मन मध्य माग९,
काल को न लिजिये ॥५॥
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सिंह को छेड़ने१ से वह खा जाता है, इसलिये उससे किसी प्रकार की युक्ति२ से भी छेड़ छाड़ नहीं करना चाहिये । शूर वीर को छेड़ने से भी देखते देखते ही उसके हाथ से नष्ट३ हो जाता है, सो उससे भी युद्ध नहीं करना चाहिये ।
जो बारुद४ के मकान में अग्नि साथ लेकर जाते हैं, उनके जीवित रहने की आशा नहीं रहती, वे व्यर्थ५ ही जल जाते हैं ।
हिमगिरी के कोट के नजदीक लग कर रण बाजों६ पर चोट लगते हैं अर्थात नगाड़ा आदि बजाते हैं तो किस की ओट उबरेंगे ? वे तो देखते देखते ही हिम से दब कर गल जायेंगे ।
उसी प्रकार अज्ञानी७ होकर साधु से ज्ञान का विवाद रूप युद्ध न करैं८, मेरी बात कान देकर सुनैं, मन में विषयों का चिंतन कर के काल मार्ग९ न पकड़ें ।
(क्रमशः)
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