*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*शूरा होइ सुमेर उलंघै, सब गुण बँध्या छूटै ।*
*दादू निर्भय ह्वै रहे, कायर तिणा न टूटै ॥*
=============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
मैंने सुना है, एक महिला अपने जन्म-दिन पर गीत गा रही थी। जन्म-दिन था तो रात देर तक गाती रही।… वीणावादिनी वर दे, वीणावादिनी वर दे ! ” मुल्ला नसरुद्दीन उसके पड़ोस में रहता था। उसके सुनने के बर्दाश्त के बाहर हो गया। उसने जाकर दरवाजा खटखटाया और कहा : बाई ! गाने से कुछ न होगा, अखबार में विज्ञापन दे।
.
नाराज था बहुत कि यह क्या बकवास लगा रखी है- -वर दे, वर दे! मगर उस महिला ने सुना ही नहीं, वह अपनी मस्ती में थी, वह गाती रही, गाती रही। दो बज गए, मुल्ला करवट बदलता है, मगर नींद नहीं आती। आखिर वह फिर गया। अब की बार बहुत जोर से दरवाजा खटखटाया और कहा कि दरवाजा खोलो। अगर एक बार और कहा वीणावादिनी वर दे, तो मैं पागल हो जाऊंगा।
.
कोई उठा बिस्तर से, किसी ने दरवाजा खोला। वह महिला खड़ी थी। उसकी आंखें नींद से भरी हुईं। उसने कहा : क्या कह रहे हैं आप ? नसरुद्दीन ने कहा : अगर एक बार और कहा कि वीणावादिनी वर दे तो मैं पागल हो जाऊंगा। उस महिला ने कहा : बहुत देर हो गयी, मुझे तो गाना बंद किए घंटा- भर हो चुका। यही मैं तुमसे कहता हूं : बहुत देर हो गयी। पागल तो तुम अब हो ही चुके। अब भागकर कहां जाओगे ? अब भागने को कोई जगह न बची।
.
प्रेम जगह छोड़ता ही नहीं। प्रेम के लिए स्थान का अर्थ ही नहीं होता। अब तुम जहां जाओगे मैं पीछा करूंगा। अब कोई उपाय नहीं है। अब तुम जहां जाओगे मुझे अपने से पहले पहुंचा हुआ पाओगे। तुम जाकर बैठ जाओगे हिमालय की गुफा में और तुम मुझे गुफा में बैठा हुआ पाओगे। मेरे शब्द तुम्हें वहां सुनाई पड़ेंगे। मेरी आंखें वहां तुम्हें दिखाई पड़ेंगी। अब देर हो गयी।
.
तुम कहते हो: मैं आपसे बहुत-बहुत दूर चला जाना चाहता हूं। बहुत-बहुत पास ही आ जाओ। अगर सच में ही मुझसे मुक्त होना है तो बहुत-बहुत पास आ जाओ, तुम मुझसे मुक्त हो जाओगे। वही उपाय है मुक्त होने का। गुरु से मुक्त होने का एक ही उपाय है : उसके इतने पास आ जाओ कि तुम उससे गुजर जाओ और परमात्मा में प्रवेश हो जाए।
.
गुरु तो द्वार है। द्वार से गुजरना होता है। गुजर गए, फिर बात समाप्त हो गयी। दूर-दूर जाकर तो और याद आएगी। दूरी से याद बढ़ती है, घटती नहीं। दूरी कब याद को मिटा पायी है ? दूरी ने सदा याद को बढ़ाया है। वैसे तुम कह ठीक ही रहे हो कि लगता है इनकार नहीं कर सकता। वही मेरा काम है तुम हो सकते हो। क्या पसंद है तुम्हें भय या अभय ? लय दोनों में है किंतु मैं तो इन दिनों प्रलय सोच रहा हूं सो भी छंद में स्वर में, सुगंध में !
.
प्रलय ! वही तो गुरु के पास आने का अर्थ कि पास रहा तो आप मिटाकर रहेंगे। उससे मैं यहां। वही मेरा धंधा है। तुम्हें मिटाऊं, तो ही है। सब नष्ट हो जाएगा। तुमने अब तक जैसा अपने को जाना है, नहीं बचेगा। तुमने जो अब तक अपने को पहचाना है, वह नहीं बचेगा। तुम्हारा सारा तादात्म्य, तुम्हारा नाम-पता-ठिकाना सब खो जाएगा। लेकिन तभी तुम्हें पहली दफे अपना असली पता चलेगा, अपना असली ठिकाना याद आएगा।
.
तुम अभी सराय को घर समझ बैठे हो। मैं तुम्हें तुम्हारा घर देना चाहता हूं। लेकिन तुम्हारी सराय तो छिनेगी। तुम अभी नकली सिक्कों का ढेर लगाए, संपदा समझ रहे हो। मैं तुम्हें असली संपदा देना चाहता हूं। लेकिन तुम्हें कंकड़-पत्थर तो छोड़ने ही होंगे, तभी तुम्हारी झोली में जगह होगी कि हीरे-जवाहरात भर सको। तो हर लगता है, यह मैं समझता हूं। और जितने करीब आओगे उतना हर बढ़ेगा। जितना प्रेम बढ़ेगा उतना हर बढ़ेगा। क्योंकि प्रेम का अर्थ ही होता है : अंतिम घड़ी में प्रेम मृत्यु हो जाता है। मगर मृत्यु के बाद ही पुनरुज्जीवन है।
.
जैस-जैसे परमात्मा की कृपा तुम पर होगी वैसे-वैसे घबड़ाहट बढ़ेगी। आदमी डरता है प्रेम से, सदा से डरता रहा है। इसलिए तो पृथ्वी प्रेम-शुन्य हो गई है। इसलिए तो गुरु और शिष्य खो गए हैं, नाम ही रह गए हैं, शब्द ही रह गए हैं। गुरुओं की जगह अध्यापक बचे हैं, शिष्यों की जगह विद्यार्थी। विद्यार्थी और अध्यापक में कोई मृत्यु नहीं घटती, कोई प्रेम नहीं घटता–लेन–देन की बात है। विद्यार्थी गुरु से कुछ खरीद लेता है, गुरु को कुछ दे देता है। बात खत्म हो गयी। प्राणों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता।
.
लोग डरने लगे हैं। लोग समझते हैं कि यह कांटा है प्रेम। कांटों की झाड़ी है, इसमें उलझ गए तो निकल न पाएंगे। लोग बचकर चलते हैं। साधारण प्रेम भी बहुत उलझा लेता है, तो असाधारण प्रेम का तो कहना ही क्या ! जब तुम्हारे मन में यह भाव उठा है कि अब भाग जाऊं, उसका मतलब ही यह है कि अब भागने का समय निकल गया। यह भाव ही तब उठता है जब समय निकल जाता है। यह समझ ही तब आती है जब उपाय नहीं रह जाता। जब खतरा इतना हो जाता है तभी तो यह खयाल आता है कि अब भाग जाऊं। लेकिन तब भागकर कहां जाओगे ?
.
प्रेम समय और स्थान की दूरी नहीं जानता। प्रेम में समय और स्थान दोनों मिट जाते हैं। प्रेम की निकटता शारीरिक निकटता नहीं है। अगर शारीरिक निकटता ही होती तो तुम दूर जा सकते हो, मगर प्रेम की निकटता तो आत्मिक निकटता है, इसलिए कैसे दूर जाओगे ? न तो पास बैठने से कोई पास बैठता है, न दूर जाने से कोई दूर जाता है। प्रेम की निकटता आत्मीय संबंध है। तुम्हारे मन में भय उठा है, स्वाभाविक।
.
तुम भाग भी जाओ, तुम कसम भी खा लो कि मेरी याद न करोगे, तुम कसम भी खा लो कि अब कभी लौटकर यहां न आओगे, मगर ये कसमें काम न आएंगी। ये कसमें टूट जाएंगी। और तुम न आए तो कोई हर्ज नहीं, मैंने तो कसम नहीं खाई है। मैं तो आ ही सकता हूं। छोड़ भी दोगे, कसम खा लोगे कि अब नहीं नाम लेंगे, मगर फिर भी यह नाम आ जाएगा। फिर भी यह याद आ जाएगी। यह याद बस गयी अब। इसने तुम्हारे भीतर घर कर लिया। यह घर जब कर लेती है तभी भागने का सवाल उठता है। मगर तब तक सदा देर हो गयी होती है।
.
लेकिन प्रेयसी शायद दूर जा भी सके, क्योंकि वे नाते शरीर के हैं। यद्यपि प्रेयसी भी दूर नहीं जा पाती, प्रेमी भी दूर नहीं जा पाते। प्रेमी कितने ही दूर हो जाएं, उनके हृदय पास ही धड़कते रहते हैं। लेकिन फिर भी शारीरिक प्रेम में तो यह संभव है कि कोई दूर चला जाए, कसमें खा ले, दूर हट जाए, प्रेम का खतरा देखे और अपने को बचा ले; लेकिन आत्मिक प्रेम में तो यह संभव ही नहीं।
.
तुम्हारा मेरी देह से थोड़े ही नाता है। मेरा तुम्हारी देह से थोड़े ही नाता है। यह नाता किसी और लोक का है। यह नाता किसी दूसरे ही जगत् का है। जब एक बार बन जाता है तो बन गया। जिंदगी में भी यह नाता रहेगा, मौत में भी यह नाता रहेगा। तुम शरीर भी छोड्कर चले जाओगे, तो भी यह नाता टूटनेवाला नहीं।
.
इसलिए अब दूर जाने की बजाय, दूर जाने में जितनी शक्ति लगाओगे, अच्छा होगा पास आने में ही लगाओ न ! पास ही आ जाओ ! इतने पास आ जाओ कि दो-पन न रह जाए, दुई न रह जाए। और एक बार भी तुम्हारे जीवन में किसी के साथ भी इतनी आत्मीयता की प्रतीति हो जाए कि दुई मिट जाए, तो परमात्मा की पहली झलक तुम्हारे जीवन में आ गयी। क्योंकि परमात्मा दो के पार है। एक झरोखा खुला। मुझे एक झरोखा बना लो।
आज इतना ही। ओशो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें