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*दादू साचा साहिब सेविये, साची सेवा होइ ।*
*साचा दर्शन पाइये, साचा सेवक सोइ ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भूपति झूठ लखी कहि मारहु,*
*संतन आय कलंक दियो है ।*
*मारन जात भये न सके सहि,*
*नीर बहै दृग कैत१ लियो है ।*
*भूप कहै तुम साच तजो जनि,*
*स्वामिन को सु प्रताप भयो है ।*
*धूप सुनी महिमा सु हुओ शिष,*
*प्रेम सन्यो उर भीज गयो है ॥४०५॥*
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जब इसकी सचाई की साक्षी अग्नि देव ने दे दी, नहीं जलाया । तब राजा ने धनी की बात झूठ मान कर कहा- इसे मार डालो, इसने यहाँ आकर साधु के झूठा ही चोरी का कलंक लगाया है ।
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जब राजपुरुष उसे भारने को जाने लगे तब साधु(जो पहले चोर था) उसका वध नहीं सह सका । नेत्रों से अश्रु जल बहता हुआ बोला१- "इसको मत मारिये, मैने इसका धन लिया है ।"
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राजा बोला- "हे संत ! तुम तो अग्नि की साक्षी द्वारा सच्चे सिद्ध हो चुके हो, अब तुम सत्य को क्यों त्यागते हो ? उसने कहा- "यह तो स्वामीजी के महान् प्रताप से मैं सच्चा हो गया हूँ । फिर उसने अपनी सब बात सुनाई ।
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राजा ने सुनकर उसको छोड़ दिया और अपने मन में निश्चय किया कि मैं भी शिष्य बन जाऊँ । फिर राजा भी चतुर्भुजजी का शिष्य हो गया और अपना दूसरा जन्म मान कर राजा का मन संत प्रेम में सन जाने से प्रभुप्रेम से भीग गया"॥
(क्रमशः)
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