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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४३५)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४३५. त्रिताल*
*ए ! प्रेम भक्ति बिन रह्यो न जाई,*
*परगट दरसन देहु अघाई ॥टेक॥*
*तालाबेली तलफै माँही,*
*तुम बिन राम जियरे जक नांही ।*
*निशिवासर मन रहै उदासा,*
*मैं जन व्याकुल श्वासों श्वासा ॥१॥*
*एकमेक रस होइ न आवै,*
*तातैं प्राण बहुत दुख पावै ।*
*अंग संग मिल यहु सुख दीजे,*
*दादू राम रसायन पीजे ॥२॥*
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मैं आपकी प्रेमा भक्ति के बिना जीवन नहीं धारण कर सकता हूँ । क्या आपकी भक्ति करने पर भी आपके दर्शनों के बिना, मुझे दुःखी रहना पड़ेगा ? अतः आपको मेरे हृदय में प्रकट होकर दर्शन देना चाहिये । जिससे मैं सुखी हो जाऊँ ।
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मेरा मन विरह से व्याकुल हो रहा है । हे राम ! आप के बिना मेरे को शान्ति प्राप्त नहीं हो रही है, किन्तु दिन रात खिन्न रहता हूं । मैं आपका भक्त हूं, फिर भी मैं प्रतिश्वास व्याकुल हो रहा हूं । ब्रह्मानन्द रस के न मिलने के कारण मेरा मन व्यथित हो रहा है ।
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आप मेरे अंगों का संग करके मेरे से अभिन्न होकर अभेद का जो आनन्द है, वह प्रदान करें । जिससे मैं आपसे अभिन्न होकर रामनाम रस का पान करता हुआ ब्रह्मानन्द में ऐसा डूब जाऊं, जैसे जल का बिन्दु समुद्र में डूब कर एक हो जाता है ।
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महोपनिषद् में कहा है कि –
जिससे कल्पनारूप कलंक से रहित, परम शुद्ध मलविक्षेप से रहित, परमपावन परमात्मा मैं जिस प्रकार जल की बूंद समुद्र में मिल जाती है, उसी तरह वह वासना रहित बड़भागी महात्मा एकता को प्राप्त हो जाता है ।
(क्रमशः)

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