बुधवार, 12 जून 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १०१/१०४*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १०१/१०४*
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अलह अलख अगाध हरि, तेज पुंज ताजीम३ ।
कहि जगजीवन अमर सुलाहा, ताला तहां न वीम४ ॥१०१॥
(३. ताजीम=सम्मान=प्रदर्शन) {४. वीम=भय या हानि(संकट)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वे प्रभु न दीखते हुये सर्व व्यापक हैं उनकी थाह नहीं है । उनका तेजोमय स्वरूप भय मुक्त कर अमरत्व प्रदान कर जीव को कोइ कष्ट नहीं होने देता है ।
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*मो* मन मोहन रांमजी, *गरौ*५ ग्यांन ता मांहि ।
कहि जगजीवन सरस वासना, हरि बिन दूजी नांहि ॥१०२॥
(५. गरौ=गल जाय, पिघल जाय)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी सारा ज्ञान उसमें विलय हो जाये जो लगन हमें आपके नाम की लगे, हमें अन्य कुछ भी नहीं चाहिए बस प्रभु आपकी भक्ति ही सर्वोपरि हो ।
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*रा* रस राजस ** भगति, रांमति मांहै रांम ।
कहि जगजीवन *खी* खलक, काया खीजै कांम ॥१०३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी, हमारा ऐश्वर्य आपकी भक्ति हो हमें उसी में मगन रहें । वह ही सब कुछ हो, व्यर्थ के विषयों में पड़ कर यह देह क्यों छीजे या खिन्न हो ।
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राखी६ गई दिवाली७ आई, दुनियां का त्यौहार ।
कहि जगजीवन हरि भगत, हरि भजि उतरै पार ॥१०४॥
{६. राखी=रक्षाबन्धन त्यौहार (पर्व) (श्रावणमास की पूर्णिमा)}
{७. दिवाली=दीपावलि त्यौहार (कार्तिक मास की अमावस्या)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि संसार का व्यवहारिक क्रम निरंतर चलता रहता है यथा-राखी जाती है फिर दीपावली आती है ऐसे ही यह त्यौहार क्रम दैनिक क्रम से चलता रहता है । और प्रभु भक्तों का त्यौहार उनका स्मरण ही है, जिससे वे पार उतरते हैं ।
(क्रमशः)

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