मंगलवार, 11 जून 2024

*श्रीरामकृष्ण के देह-धारण का अर्थ*

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*पर उपकारी संत जन, साहिब जी तेरे ।*
*जाती देखी आतमा, राम कहि टेरे ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)श्रीरामकृष्ण के देह-धारण का अर्थ*
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श्रीरामकृष्ण काशीपुर के बगीचे में हैं । शाम हो गयी है, वे अस्वस्थ हैं । ऊपरवाले बड़े कमरे में उत्तर की ओर मुँह किये बैठे हैं । नरेन्द्र और राखाल दोनों पैर दबा रहे हैं । पास ही मणि बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण ने इशारे से उन्हें पैर दबाने के लिए कहा । मणि चरण सेवा करने लगे ।
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आज रविवार है, १४ मार्च १८८६, फागुन की शुक्ला नवमी । गत रविवार को श्रीरामकृष्ण की जन्म-तिथि की पूजा बगीचे में हो गयी है । गत वर्ष दक्षिणेश्वर के कालीमन्दिर में बड़े समारोह के साथ जन्म-महोत्सव मनाया गया था । इस वर्ष वे अस्वस्थ हैं । भक्तों के हृदय में विषाद छाया है । इसलिए पूजा और उत्सव नाममात्र के लिए हुए ।
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भक्तगण सदा ही बगीचे में उपस्थित रहकर श्रीरामकृष्ण की सेवा किया करते हैं । श्रीमाताजी दिनरात उनकी सेवा में लगी रहती हैं । किशोर भक्तों में से बहुतेरे सदा ही वहाँ उपस्थित रहते हैं - नरेन्द्र, राखाल, निरंजन, शरद, शशि, बाबूराम, योगीन, काली, लाटू आदि ।
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जो कुछ अधिक उम्रवाले भक्त हैं, वे प्राय: नित्य आकर श्रीरामकृष्ण के दर्शन कर जाते हैं । कभी कभी वे रह भी जाते हैं । तारक, सींती के गोपाल भी वहाँ हर समय रहते हैं तथा छोटे गोपाल भी ।
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श्रीरामकृष्ण आज बहुत अस्वस्थ हैं । आधी रात का समय है । ऊपर के हाल में श्रीरामकृष्ण लेटे हुए हैं । तबीयत बहुत खराब है - आँख नहीं लगती । दो-एक भक्त चुपचाप पास बैठे हुए हैं - इसलिए कि कब कैसी जरूरत हो । एक आध बार झपकी आती है, और श्रीरामकृष्ण सोते हुए से जान पड़ते हैं ।
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मास्टर पास बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण इशारा करके और भी पास आने के लिए कह रहे हैं । उन्हें इतना कष्ट है कि पत्थर का हृदय भी पानी-पानी हो जाय । वे धीरे धीरे बड़े कष्ट के साथ मास्टर से कह रहे हैं - "तुम लोग रोओगे, इसलिए इतना दुःख भोग कर रहा हूँ । सब लोग अगर कहो कि इतने कष्ट से तो देह का नाश हो जाना ही अच्छा है, तो देह नष्ट हो जाय ।"
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श्रीरामकृष्ण की इन बातों को सुनकर भक्तों का हृदय टूकटूक हो रहा है । वे भक्तों के माता-पिता और रक्षक हैं । वे ऐसी बातें कह रहे हैं ! सब लोग चुप हो रहे ।
गम्भीर रात्रि है । श्रीरामकृष्ण की बीमारी मानो और बढ़ रही है । अब क्या किया जाय ? बहुत सोचकर, भक्तों ने एक आदमी को कलकत्ता भेजा । उसी गम्भीर रात्रि में श्रीयुत उपेन्द्र डाक्टर तथा श्रीयुत नवगोपाल कविराज को लेकर गिरीश काशीपुर के घर में आये ।
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भक्तगण पास बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण जरा स्वस्थ हो रहे हैं - कह रहे हैं - "देह अस्वस्थ है, पंचभूतों से बना शरीर, - ऐसा तो होगा ही !"
गिरीश की ओर देखकर कह रहे हैं, "बहुत से ईश्वरीय रूपों को देख रहा हूँ । उनमें एक यह रूप भी (अपने रूप को) देख रहा हूँ ।"
(क्रमशः)

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