बुधवार, 26 जून 2024

*विल्वमंगलजी*

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*टेर मन भाई, जब लग जीवे,*
*प्रीति कर गाढ़ी प्रेम रस पीवे ॥*
*दादू अवसर जे जन जागे,*
*राम घटा-जल वरषण लागे ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*विल्वमंगलजी*
*छप्पय-*
*विलमंगल राघव कहै, श्याम कृपा कोपर१ विदित ॥*
*उक्ति युक्ति पुनि चोज२, कवित कीन्हे करुणामृत ।*
*संत जनन आधार, जहां उर रावल३ शुभ कृत ॥*
*प्रभु कर स्वै कर देइ, छाय धरि के छुटवाये ।*
*सबल गिणूंगा तबै, जबै हिरदा तैं जाये ॥*
*चिन्तामणि उपदेश करि, गुरु सोमगिरि धारे सदित४ ।*
*विलमंगल राघव कहै, श्याम कृपा कोपर विदित ॥२९७॥*
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राघवदासजी कहते हैं- विल्वमंगलजी श्याम सुन्दर श्रीकृष्ण भगवान् के कृपा पात्र१ हो गये हैं । यह बात अति प्रकट है । सुन्दर उक्ति युक्ति और चातुर्य२ पूर्ण कविताओं द्वारा आपने 'करुणामृत' नामक ग्रन्थ की रचना की है । वह ग्रन्थ रसिक संतजनों का आधार है । उसमें जहाँ तहाँ अपने हृदय के सम्राट३ श्रीकृष्णजी के ही सुन्दर कृत्यों का वर्णन है ।
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प्रभु श्रीकृष्ण ने अपना हाथ आपके हाथ में देकर एक घने वृक्ष की छाया में ले जाकर बैठाया । फिर आप प्रभु का हाथ नहीं छोड़ते थे तब प्रभु ने बल से छुड़ाया था या आपके हृदय में अपनी छाया कर अर्थात् अपना ध्यान स्थिर करके हाथ छुड़ा लिया था । उस समय आपने कहा- "मैं आपको बलवान तब गिनूंगा जब आप मेरे हृदय से जायेंगे ॥२९७॥
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हस्तमुत्क्षिप्य यातोऽसि बलात्कृष्ण किमद्भूतम् ।
हृदयाद् यदि निर्यासि पौरुषं गणयामिते ॥
हाथ छुड़ाये जात हो, निबल जान के मोहि ।
हिरदै तैं जब जाहुगे, सबल बदाँगा तोहि" ॥
आपने चिन्तामणि के उपदेश से विषय सुख त्यागकर शीघ्र ही सोमगिरिजी को गुरु धारण किया था और भगवद्भजन में संलग्न हुए थे ॥२९७॥
(क्रमशः)

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