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*‘पाया पाया’ सब कहैं, केतक ‘देहुँ दिखाइ’ ।*
*कीमत किनहूँ ना कही, दादू रहु ल्यौ लाइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १३५~श्रीरामकृष्ण तथा श्रीबुद्धदेव*
*(१)क्या बुद्धदेव नास्तिक थे*
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श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ काशीपुर के बगीचे में हैं । आज शुक्रवार, शाम के पाँच बजे का समय होगा, चैत की शुक्ल पंचमी है, ९ अप्रैल, १८८६ ।
नरेन्द्र, काली, निरंजन और मास्टर नीचे बैठे हुए बातचीत कर रहे हैं ।
निरंजन - (मास्टर से) - सुना है, विद्यासागर का एक नया स्कूल होनेवाला है । नरेन्द्र को इसमें अगर कोई काम –
नरेन्द्र - अब विद्यासागर के पास नौकरी करने की जरूरत नहीं है ।
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नरेन्द्र बुद्ध-गया से अभी ही लौटे हैं । वहाँ वे बुद्ध की मूर्ति के दर्शन कर उसके सामने गम्भीर ध्यान में मग्न हो गये थे । जिस पेड़ के नीचे तपस्या करके बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था, उस पेड़ की जगह एक दूसरा पेड़ उगा है, इसे भी उन्होंने देखा है । काली ने कहा, 'एक दिन गया के उमेशबाबू के यहाँ नरेन्द्र का गाना हुआ, मृदंग के साथ - ख्याल, ध्रुपद आदि ।'
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श्रीरामकृष्ण बड़े कमरे में बिस्तरे पर बैठे हुए हैं । सन्ध्या का समय है । मणि अकेले पंखा झल रहे हैं । लाटू भी वहीं आकर बैठे ।
श्रीरामकृष्ण - (मणि से ) - एक चद्दर और एक जोड़ा जूता लेते आना ।
मणि - जी बहुत अच्छा ।
श्रीरामकृष्ण - (लाटू से) - चद्दर तो दस आने की हुई, और जूतों को मिलाकर कितने दाम होंगे ?
लाटू - एक रुपया दस आने ।
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श्रीरामकृष्ण ने मणि की ओर दामों की बात सुन लेने के लिए इशारा किया ।
नरेन्द्र भी आकर बैठे । शशि, राखाल तथा दो-एक भक्त और आये ।
श्रीरामकृष्ण नरेन्द्र से पैरों पर हाथ फेरने के लिए कह रहे हैं । इशारे से श्रीरामकृष्ण ने नरेन्द्र से पूछा - तूने कुछ खाया ?
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श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से, सहास्य) - यह वहाँ(बुद्ध-गया) गया था ।
मास्टर - (नरेन्द्र से) - बुद्धदेव का क्या मत है ?
नरेन्द्र - तपस्या करके उन्होंने जो कुछ पाया था, वह मुख से नहीं कह सके । इसीलिए सब लोग उन्हें नास्तिक कहते हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - (इशारा करके) - नास्तिक क्यों, नास्तिक नहीं । मुख से अपनी अवस्था का हाल वे नहीं कह सके । बुद्ध क्या है, जानते हो ? बोधस्वरूप की चिन्ता करके वही हो जाना - बोधस्वरूप बन जाना ।
नरेन्द्र - जी हाँ, इनके तीन दर्जे हैं, बुद्ध, अर्हत् और बोधिसत्त्व ।
श्रीरामकृष्ण - यह उन्हीं की क्रीड़ा है, एक नयी लीला ।
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“नास्तिक वे क्यों होने लगे ? जहाँ स्वरूप का बोध होता है, वहाँ अस्ति और नास्ति की बीचवाली अवस्था है ।”
नरेन्द्र - (मास्टर से) - यह वह अवस्था है, जिसमें विरोधी भावों का एकीकरण होता है । जिस हाईड्रोजन (Hydrogen) और ऑक्सीजन (Oxygen) से ठण्डा पानी तैयार होता है, उसी हाईड्रोजन और ऑक्सीजन से उष्ण अग्नि-शिखाएँ भी (Oxy- Hydrogen blow-pipe) उत्पन्न होती हैं ।
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"जिस अवस्था में कर्म और कर्मों का त्याग दोनों हो जाते हैं, अर्थात् निष्काम कर्म होता है, बुद्ध की वही अवस्था थी ।
"जो लोग संसारी हैं, इन्द्रियों के विषयों को लेकर हैं, वे कहते हैं, सब 'अस्ति' है; उधर मायावादी कहते हैं - सब 'नास्ति' है; बुद्ध की अवस्था इस 'अस्ति' और 'नास्ति' से परे की है ।"
श्रीरामकृष्ण - ये 'अस्ति' और 'नास्ति' प्रकृति के गुण हैं । जहाँ यथार्थ बोध है, वह 'अस्ति' और 'नास्ति' से परे की अवस्था है ।
(क्रमशः)

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