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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४३१)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४३१. भैभीत भयानक । दीपचन्दी ताल*
*डरिये रे डरिये, परमेश्वर तैं डरिये रे ।*
*लेखा लेवै, भर भर देवै, ताथैं बुरा न करिये रे, डरिये ॥टेक॥*
*सांचा लीजी, सांचा दीजी, सांचा सौदा कीजी रे ।*
*सांचा राखी, झूठा नाखी, विष ना पीजी रे ॥१॥*
*निर्मल गहिये, निर्मल रहिये, निर्मल कहिये रे ।*
*निर्मल लीजी, निर्मल दीजी, अनत न बहिये रे ॥२॥*
*साहि पठाया, बनिजन आया, जनि डहकावै रे ।*
*झूठ न भावै , फेरि पठावै, कीया पावै रे ॥३॥*
*पंथ दुहेला, जाइ अकेला, भार न लीजी रे ।*
*दादू मेला, होइ सुहेला, सो कुछ कीजी रे ॥४॥*
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सर्वदा परमेश्वर और पाप कर्मों से डरना चाहिये और हृदय में ईश्वर की धारणा करके अपने जीवन को पूरा करना चाहिये । भगवान् कर्मों का लेखा-जोखा देखकर आगे के जन्म का विधान करते हैं । प्राणियों को अपने कर्मानुसार ही जन्म मिलता है । इसलिये पाप-कर्मों से डरकर उनको त्याग दो, अच्छे कर्म ही करना चाहिये ।
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लेन-देन का व्यवहार भी सत्य को हृदय में धारण करके ही करना चाहिये कि परमात्मा देख रहा है, मैं क्या कर रहा हूँ ? मिथ्या-चिन्तन को त्याग कर सत्य ब्रह्म का ही चिन्तन करो । विषय-विष का पान मत करो ।
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शुद्ध ब्रह्म की उपासना करो, शुद्ध उपदेश करो और शुद्ध ब्रह्म का ही ध्यान करो । विषयवासनाओं में अपने मन की वृत्ति जाने मत दो, परमात्मा ने आपको जगत् में सत्य व्यवहार के लिये ही भेजा है । अतः विषयों में मन को मत लगाओ । प्रभु मिथ्याव्यवहार को सहन नहीं करते, मिथ्या व्यवहार करने वाला प्रभु से प्रेरित होकर नाना योनियों में जाकर विषयों में ही भ्रमता रहता है ।
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प्रभुप्राप्ति का मार्ग तो बहुत कठिन है । वहां पर अकेला ही जाता है । अतः अशुभ कर्म और सकाम कर्मों का भार अपने शिर पर मत रक्खो । जो कुछ करना है, वह निष्काम भाव से ही करो । विचार भी ऐसा ही करो, जिससे जीव ब्रह्म की एकता हो जाय ।
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उपनिषद् में लिखा है कि –
जिनका आचरण अच्छा है, वे अच्छी योनि पावेंगे जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य योनि । जो निषिद्ध आचरण वाले हैं, बुरी योनियों में जायेंगे जैसे कूकर, सूकर, चाण्डाल आदि योनियों में जायेंगे । अतः ईश्वर से डरते हुए अच्छे कर्म ही करने चाहिये ।
(क्रमशः)
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