🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
*साधु कंवल हरि वासना, संत भ्रमर संग आइ ।*
*दादू परिमल ले चले, मिले राम को जाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
साधु का अंग (६)
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संत प्रताप मिलै जिव संतन,
पाव१ पसाव बिना नहिं पावै ।
कमल की वास गई सु अली२ कनैं३,
संग सुगंधि तहां अलि आवै ।
शीतल अंग महा स्रक्४ सौरभ५,
पाय सु परिमल६ को अहि७ धावै ।
हो रज्जब देखि हँस्या बल चुंबक,
सूति सूई सुरति अंग८ लावै ॥२॥
कमल की सुंगध भ्रमर२ के पास३ जाती है तब उस सुगंध के साथ भ्रमर कमल के पास आता है ।
शरीर को शीतल करने वाली चन्दन४ की महान् सुगंध५ को प्राप्त करके ही सुगंध६ के लिये सर्प७ दौड़कर चन्दन पर आता है ।
चुंबक की शक्ति से सुई खिंचकर चुंबक के आ लगती है । वैसे ही संतों के प्रताप
से ही जीव संतों से मिलता है । संतों की कृपा बिना संतों के चरणों१ को नहीं प्राप्त कर सकता ।
हे सज्जनों ! संत शक्ति को देखकर मुझे हर्ष से हंसी आ रही है कि - वे मोह निन्द्रा में प्रसुप्त वृत्ति को जगा कर स्वस्वरूप८ रूप ब्रह्म में लगा देते हैं ।
(क्रमशः)
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