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*जलती बलती आतमा, साधु सरोवर जाइ ।*
*दादू पीवै राम रस, सुख में रहै समाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
साधु का अंग (६)
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साधु समागम होत हि पाइयै,
राम को नाम शिरोमणी साचो ।
निर्मल ज्ञान गोविन्द को ऊपजे,
कंचन होत पलट्टि के काचो ॥
तामहि फेर न सार मन: कर्म,
साधु के संग कोई नर राचो ।
हो रज्जब सु:ख सदा सत संगति,
जीत ही लागे नहीं यम आँचो१ ॥४॥
साधु का समागम होते ही कल्याण का सच्चा और श्रेष्ठ साधन राम का नाम प्राप्त होता है ।
गोविन्द के स्वरूप का निर्मल ज्ञान हृदय में उत्पन्न होता है । काच के समान प्राणी बदल कर कचंन के समान श्रेष्ठ बन जाता है ।
उस साधु संग की महिमा में परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है, हम मन, वचन, कर्म से कहते हैं वह सार रूप है साधु अंग में कोई भी नर अनुरक्त होवे,
सत्संगति में सदा सुख ही प्राप्त होता है और यम से होने वाला दु:ख१ जीव को नहीं होता है ।
(क्रमशः)

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