शुक्रवार, 21 जून 2024

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*निराधार घर कीजिये, जहँ नांहि धरणि आकास ।*
*दादू निश्‍चल मन रहै, निर्गुण के विश्‍वास ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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#योग का अर्थ होता है परमात्मा से मिलन। योग का अर्थ नहीं होता कि खड़े हैं सिर के बल। ये सब कवायदें हैं। योग का अर्थ नहीं होता कि बैठे हैं सांस रोक कर। योग का अर्थ नहीं होता कि बैठे हैं सांस रोक कर। योग का अर्थ नहीं होता कि उलटे—सीधे, शरीर को इरछा—तिरछा किये सता रहे हैं।
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योग का सीधा—सीधा अर्थ है—मिलन। योग यानी जुड़ना। परमात्मा से जो जुड़ गया वही योगी है। ये जिनको तुम योगी समझते हो, ये सब सरकसों में भर्ती करने योग्य हैं। इनका कोई भी मूल्य नहीं। अच्छा है, शरीर के स्वास्थ्य के लिए ठीक है, पर इससे कुछ परमात्मा के मिलने का लेना—देना नहीं है। परमात्मा से कौन मिलता है? जो स्वस्थ है। जो स्वयं में स्थित है।
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जौ वर्तमान में आरूढ़ है। क्योंकि परमात्मा का द्वार वर्तमान है। अतीत है नहीं अब, न हो चुका; भविष्य अभी आया नहीं, वह भी नहीं है। है क्या? यह क्षण ! इस क्षण से ही तुम प्रवेश करो तो परमात्मा में पहुंच सकते हो। क्योंकि यही क्षण वास्तविक है, अस्तित्ववान है। और परमात्मा है महा अस्तित्व। इसी क्षण के द्वार से सरको और परमात्मा में पहुंच जाओगे।
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ध्यान की सारी प्रक्रियाएं इसी क्षण में उतर जाने की प्रक्रियाएं हैं। जब चित्त में कोई विचार नहीं होता, तो स्वभावत: समय मिट जाता है। क्योंकि विचार या तो अतीत के होते हैं या भविष्य के होते हैं। वर्तमान का तो विचार कभी होता ही नहीं। तुम करना भी चाहो तो न कर सकोगे; बैठ कर कोशिश करना। वर्तमान का कोई विचार संभव नहीं है; वह असंभावना है। तुम जब भी विचार करोगे तो अतीत का होगा।
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यह भी हो सकता है कि सामने गुलाब का फूल खिला है और जैसे ही तुमने कहा, ' अहा, कितना सुंदर फूल!' यह अतीत हो गया। यह तुम्हारी जो प्रतीति हुई थी सौंदर्य की, उसकी स्मृति है अब। यह अतीत हो गया, यह अब वर्तमान न रहा। तुम बोले कि अतीत में गये, या भविष्य में गये। विचार उठा, कि अतीत या भविष्य। तुम डोल गये दायें या बायें, मध्य खो गया। मध्य तो निर्विचार में होता है।
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ध्यान का अर्थ होता है : चुप, मौन, कोई विचार नहीं उठता, कोई विचार की तरंग नहीं उठती, झील शांत है..। यह शांत झील वर्तमान से जोड़ देती है। और जो वर्तमान से जुड़ा, वही योगी है। ध्यानी योगी है। और जो वर्तमान से जुड़ गया, वह परमात्मा से जुड़ गया; क्योंकि वर्तमान परमात्मा का द्वार है।
ओशो; मरौ हे जोगी मरौ-- प्रवचन-11

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