गुरुवार, 6 जून 2024

*धाम सु भोजन भांतिन भांतिन*

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*दादू आनंद सदा अडोल सौं, राम सनेही साध ।*
*प्रेमी प्रीतम को मिले, यहु सुख अगम अगाध ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*खेत पक्यो लख साधु सु तोरत,*
*सूख मुखै रखवार पुकारे ।*
*नाम कह्यो सुनियो सु हमार हि,*
*आप सुना सब होत सुखारे ॥*
*ले सु प्रसाद गये जन साम्हन,*
*मो अपनाय रु आज उधारे ।*
*धाम सु भोजन भांतिन भांतिन,*
*ज्यांत१ भये चरचा सु उचारे ॥४०६॥*
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एक समय चतुर्भुजजी का गेहूँ चने का खेत पका हुआ था, उधर से एक संतों की जमात निकली । पका हुआ खेत देखकर उस जमात के कुछ साधु उसमें से तोड़ने लगे । रखवारे का पुकारते पुकारते मुख सूख गया नहीं माने । तब उसने कहा- अब अधिक नहीं तोड़िये, यह चतुर्भुजजी का खेत है । चतुर्भुजजी का नाम कहा तब तो उसे सुनकर संत कहने लगे, फिर तो यह हमारा ही अन्न है ।
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होले बनाने के लिये गेहूँ चने इच्छानुसार निशंक होकर ले लिये । किसी ने जाकर चतुर्भुजजी को भी यह सुना दिया । आप सुनकर बड़े प्रसन्न हुये और प्रसाद लेकर संतों के सामने गये तथा प्रसन्न मुख से कहने लगे- "आज आपने मुझे अपनाकर मेरा उद्धार कर दिया है, मैं धन्य हूँ ।" फिर अपने स्थान पर लाकर नाना भाँति का भोजन जिमाये । पश्चात् परस्पर भक्तिसंबन्धी चर्चा करते हुई, प्रभु-प्रेमरस पान करके परम तृप्ति को प्राप्त हुए ॥
(क्रमशः) 

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