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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४३२)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४३२. दीपचन्दीताल*
*डरिये रे डरिये, देख देख पग धरिये ।*
*तारे तरिये, मारे मरिये, तातैं गर्व न करिये रे ॥टेक॥*
*देवै लेवै, समर्थ दाता, सब कुछ छाजै रे ।*
*तारै मारै, गर्व निवारै, बैठा गाजै रे ॥१॥*
*राखैं रहिये, बाहैं बहिये, अनत न लहिये रे ।*
*भानै घड़ै, संवारै आपै, ऐसा कहिये रे ॥२॥*
*निकट बुलावै, दूर पठावै, सब बन आवै रे ।*
*पाके काचे, काचे पाके, ज्यूं मन भावै रे ॥३॥*
*पावक पाणी, पाणी पावक, कर दिखलावै रे ।*
*लोहा कंचन, कंचन लोहा, कहि समझावै रे ॥४॥*
*शशिहर सूर, सूर तैं शशिहर, परगट खेलै रे ।*
*धरती अंबर, अंबर धरती, दादू मेलै रे ॥५॥*
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प्रभु परमात्मा से सदा डरते रहना चाहिये, और विचार कर शुभ कर्म ही करने चाहिये । अशुभ कर्मों से सदा डरते रहो कि कहीं हम से बुरा कर्म न हो जाय । ईश्वर सब का उद्धार करने वाला है और वह जब मारना चाहे तो मरना पड़ता है । उसकी इच्छा के बिना हम मर भी नहीं सकते ।
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अतः अभिमान को त्याग कर उससे डरते रहो । वह प्रभु मारने में, तारने में, गर्व हरण में सर्वसमर्थ है । प्राणियों की शुभ भावनाओं को वह ही ग्रहण करता है । कर्मानुसार सबको फल भी वही देता है । वह जो कुछ भी करते है, वह उसको शोभता है ।
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सब प्राणियों को गति देने वाला तथा गति का अवरोधक भी वही है । सबका नाश तथा जीवन दान देने वाला भी वही है, वह ही सद्गति देता है । अतः उसी की ही उपासना करनी चाहिये । ऐसा संत कहते हैं । वह ही जीव को अपने से दूर भेजता है और वह ही निकट बुला लेता है ।
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उसकी इच्छा से बूढा बालक बन जाता है और बालक को बूढा बना देता है । उसकी इच्छा से अग्नि जल बन जाता है और जल अग्नि बन जाता है । लोहा सोना और सोना लोहा, चन्द्रमा सूर्य और सूर्य चन्द्रमा बन जाता है । पृथ्वी आकाश और आकाश पृथ्वी बन जाती है, क्योंकि वह सर्वसमर्थशाली है ।
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लिखा है कि – जिसकी इच्छा से समुद्र सूख का स्थल(जमीन) बन जाता है, स्थल समुद्र बन जाता है, धूल के कण पर्वत बन जाते हैं और पर्वत धूलि के समान तुच्छ बन जाता है । सुमेरु मिट्टी के कण बन जाते हैं और वज्र तृण के समान तुच्छ हो जाता है । अग्नि शीतल हो जाती है और बर्फ अग्नि तुल्य हो जाता है । ऐसी लीला करने का जिसको व्यसन हो गया है, उस परमात्मा को हमारा नमस्कार है ।
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अनन्त और अचिन्त्य, महा शक्ति संपन्न ब्रह्म में परस्पर विरुद्ध धर्म वाले पदार्थों की रचना करना, यह कोई आश्चर्य नहीं समझना क्योंकि वह सामर्थ्यशाली है ।
(क्रमशः)
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