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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १०९/११२*
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एही अरथ बिचार हरि, उदर जड़ी ले आइ ।
कहि जगजीवन बाहुड़े, निहचल सुमिरै ताहि ॥१०९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि यह ही विचार कर हमने तो स्मरण रुपी जड़ी बूटी धारण करली है । जो निश्चल हो सदा हमारे साथ है ।
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*आ* अबिगत सरण समझि हरि, तहां मन निहचल राखि ।
कहि जगजीवन ब्रह्म अंग समि, रांम सुणांवै साखि ॥११०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु हमें अपना शरणागत जान कर मन को चरणों में स्थिरता प्रदान कीजिये । हम ब्रह्म अंश होवें और आपकी महिमा करते रहें ऐसी कृपा कीजिये ।
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*का* कहिये करता पुरिष, ररंकार रस रांम ।
कहि जगजीवन तत तेज हरि, धति धीरज भजि नांम ॥१११॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि उन कर्ता पुरुष प्रभु का नाम ही आनंद रुप है । उन तेज स्वरूप प्रभु का स्मरण धैर्य पूर्वक कीजिये ।
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समास आस निवास हरि, रांम रिदा मंहि जांनि ।
कहि जगजीवन संस्क्रित प्राक्रित, आतम अरथ पिछांणि ॥११२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि दो श्ब्दों के मेल से समास होता है वैसे ही दो वर्णों र व म के मेल से बनें राम को ह्रदय में धारण कर । संस्कृत या प्राकृत भाषी ज्ञान को छोड़ आत्मज्ञान को पहचान ।
(क्रमशः)

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