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*समर्थ शूरा साधु सो, मन मस्तक धरिया ।*
*दादू दर्शन देखतां, सब कारज सरिया ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
साधु का अंग ६
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साधु सवित्त१ सौ काम सरै सब,
नांहि अवित्त सौ कारज सीझे२ ।
सनीर सरोवर प्राणी सुखी सब,
सूखे सरोवर में कहा पीजे ॥
वर्षत वारि भले सोई बादर,
नांहिं जु नीर घटा कहा कीजे ।
हो रज्जब धाह३सु पाथर४ प्यारो,
पै नीरस५ धाह६ पाषाण न लीजै ॥६॥
ज्ञान भक्ति आदि धन१ से युक्त साधु से सब काम सिद्ध होतै हैं । उक्त धन से रहित साधु से कार्य सिद्ध२ नहीं होता ।
जल रहित सरोवर से तो जल पान करके सब प्राणी सुखी होते हैं । सूखे सरोवर से क्या पान किया जाय ?
जो बादल वर्षाते हैं वे ही अच्छे हैं, जिसमे जल नहीं उस घटा का क्या किया जाय ?
जो भोगों के लिये जोर से चिल्ला३ कर रोते पीटते हैं, उनहें ही मूर्ति रूप पत्थर४ वा हीरा आदि पत्थर अति प्यारे लगते हैं । किंतु जो विरक्त५ संत है चिल्ला६ कर पत्थर को नहीं अपनाता ।
(क्रमशः)

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