बुधवार, 3 जुलाई 2024

*श्रीबुद्धदेव की दया तथा वैराग्य और नरेन्द्र*

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*कछू न कीजे कामना, सगुण निर्गुण होहि ।*
*पलट जीव तैं ब्रह्म गति, सब मिलि मानैं मोहि ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*श्रीबुद्धदेव की दया तथा वैराग्य और नरेन्द्र*
भक्तगण कुछ देर तक चुप हैं । श्रीरामकृष्ण फिर बातचीत करने लगे ।
श्रीरामकृष्ण - (नरेन्द्र से) - उनका(बुद्ध का) क्या मत है ?
नरेन्द्र - ईश्वर है या नहीं, ये बातें बुद्ध नहीं कहते थे । परन्तु वे दया लेकर थे ।
"एक बाज एक पक्षी को पकड़कर उसे खाना चाहता था । बुद्ध ने उस पक्षी के प्राणों को बचाने के लिए अपने शरीर का माँस काटकर बाज को खिला दिया था ।"
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श्रीरामकृष्ण चुप हैं । नरेन्द्र उत्साह के साथ बुद्ध की और और बातें कह रहे हैं ।
नरेन्द्र - उन्हें वैराग्य भी कितना था ! राजपुत्र होकर भी उन्होंने सर्वस्व का त्याग किया ! जिनके कुछ नहीं है, कोई ऐश्वर्य नहीं है, वे और क्या त्याग करेंगे ?
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“जब बुद्ध होकर, निर्वाण प्राप्त करके एक बार वे घर आये तब उन्होंने अपनी स्त्री को, पुत्र को और राजवंश के बहुत से लोगों को वैराग्य धारण करने के लिए कहा । कैसा तीव्र वैराग्य था ! परन्तु व्यास को देखो । उन्होंने अपने पुत्र शुकदेव को संसार त्याग करने से मना किया और कहा, 'वत्स' धर्म का पालन गृहस्थ बने रहकर ही करो ।’ ”
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श्रीरामकृष्ण चुप रहे, अब तक उन्होंने एक शब्द भी न कहा ।
नरेन्द्र - बुद्ध ने शक्ति अथवा अन्य किसी उस प्रकार की चीज की कभी परवाह नहीं की । वे तो केवल निर्वाण के ही इच्छुक थे । कैसा तीव्र उनका वैराग्य था ! जब वे बोधि वृक्ष के नीचे तपस्या करने के लिए बैठे तो कहा, 'इहैव शुष्यतु मे शरीरम् ।' - अर्थात् अगर निर्वाण की प्राप्ति मैं न कर सकूँ तो मेरा शरीर यहीं शुष्क हो जाय - ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञा !
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“शरीर ही तो बदमाश है ! - उसे काबू में बिना किये क्या कुछ हो सकता है ?"
कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण फिर वार्तालाप करने लगे । उन्होंने इशारे से फिर बुद्धदेव की बात पूछी ।
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श्रीरामकृष्ण - बुद्धदेव के सिर में क्या बड़े बड़े बाल थे ?
नरेन्द्र - जी नहीं । बहुत सी रुद्राक्षों की मालाएँ एकत्र करने पर जैसा होता है, मालूम होता है, उनके सिर में वैसे ही बाल थे ।
श्रीरामकृष्ण - और आँखें ?
नरेन्द्र - आँखें समाधिलीन ।
(क्रमशः)

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