बुधवार, 3 जुलाई 2024

*श्री रज्जबवाणी, साधु मिलाप मंगल उच्छाह का अंग ७*

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*दादू देखत हम सुखी, सांई के संग लाग ।*
*यों सो सुखिया होयगा, जाके पूरे भाग ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
साधु मिलाप मंगल उच्छाह का अंग ७
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देश दिशा धनि१ भूमि सो अस्थल२,
जा परि जीवन संत विराजै ।
दरश रु परस३ कटै सब पातक,
काल जंजाल४ सु निरखत भाजै ।
प्रेम कथा सुन होंहि सखी सब,
नाम निशान५ सु प्ररकट बाजे ।
हो रज्जब भाग उदै मिल साधु सौं,
संत प्रताप सदा सब गाजै५ ॥१॥
संत मिलन से होने वाले मंगल उत्साह का परिचय दे रहै हैं -
वह देश, दिशा, भूमि और स्थान२ धन्य१ हैं, जिस पर जीवों के जीवन रूप संत विराजते हैं ।
संतों के दर्शन और चरण स्पर्श३ से सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा संतों के दर्शन से जीव काल और जगत्४ जाल से मुक्त हो जाता है ।
संतों से प्रभु प्रेम की कथा सुनकर सभी सुखी होते हैं । संतों के स्थान पर प्रभु का नाम रूप नगाड़ा५ प्रकट रूप से बजता ही रहता है अर्थात नाम ध्वनि होती ही रहती है ।
हे प्राणी ! संत से मिलने से भाग्योदय होता है । संतों के सत्संग में जाने वाले सदा हर्षित रहते हैं ।
(क्रमशः)

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