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*रत्न पदारथ माणिक मोती, हीरों का दरिया ।*
*चिंतामणि चित रामधन, घट अमृत भरिया ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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*महावीर: मेरी दृष्टी में--(ओशो)*
(ओशो द्वारा दिए गए पच्चीस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन)
मैं महावीर का अनुयायी तो नहीं हूं, प्रेमी हूं। वैसे ही जैसे क्राइस्ट का, कृष्ण का, बुद्ध का, या लाओत्से का। और मेरी दृष्टी में अनुयायी कभी भी नहीं समझ पाता है।
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और दुनिया में दो ही तरह के लोग होते है, साधारण: या तो कोई अनुयायी होता है, और या कोई विरोधी होता है। न अनुयायी समझ पाता है और न विरोधी ही समझ पाता है। एक और रास्ता भी है। प्रेम, जिसके अतिरिक्त हम और किसी रास्ते से कभी किसी को समझ ही नहीं पाते।
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अनुयायी को एक समस्या हे कि वह एक से बंध जाता है। और विरोधी को भी यह कठिनाई है कि वह विरोध में बंध जाता है। सिर्फ प्रेम को एक मुक्ति है। प्रेम को बंधने का कोई कारण नहीं है। ओरजो प्रेम बांधता हो, वह प्रेम ही नहीं है।
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तो महावीर से प्रेम करने में महावीर से बंधना नहीं होता। महावीर से प्रेम हुए बुद्ध को, कृष्ण को, क्राइस्ट को प्रेमकिया जात सकता है। क्योंकिजिस चीज को हम महावीर में प्रेम करते है, वह और हजार—हजार लोगों में उसी तरह प्रकट हुई है। महावीर को थोड़ा ही प्रेम करते है। वह जो शरीर है वर्धमान का, वह जो जन्मतिथियों में बंधी हुई एक इतिहास रेखा है, एक दिन पैदा होना और एक दिन मर जाना, इसे तो प्रेम नहीं करते।
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प्रेम करते है उस ज्योति को जो इस मिट्टी के दीए में प्रकट हुई। यह दीया कौन था यह बहुत अर्थ की बात नहीं। बहुत—बहुत दीयों में वह ज्योति प्रकट हुई है। जो ज्योति को प्रेम करेगा, वह दीए से नहीं बंधेगा; और जो दीए से बंधेगा, उसे ज्योति का कभी पता ही नहीं चलेगा। क्योंकि दीए से जो बंध रहा है। निश्चित है कि उसे ज्योति का पता नहीं चला है।
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जिसे ज्योति का पता चल जाता है उसे दीए की याद भी रहेगी ? उसे दिया फिर दिखाई भी पड़गी ? जिसे ज्योति दिख जाए, वह दीए को भूल जाएगा। इसलिए जो दीए को याद रखे है, उन्हें ज्योति नहीं दिखाई दी। और जो ज्योति को प्रेम करेगा, वह इस ज्योति को, उस ज्योति को थोड़े ही प्रेम करता फिरेगा।
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जो भी ज्योतिर्मय है—जब एक ज्योति में दिख जाएगा उसे तो कहीं भी ज्योति हो वही दिख जाएगा। सूरज में भी घर के जलते हुए दीए में भी। चाँद में भी तारों में, आग में भी जुगनू में—जहां कहीं भी ज्योति है वही दिख जाएगी।
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लेकिन अनुयायी व्यक्तियों से बंधे है, विरोधी व्यक्तियों से बंधे है। प्रेमी भर को व्यक्ति से बंधने की कोई जरूरत नहीं। और मैं प्रेमी हूं। और इसलिए मेरा कोई बंधन नहीं है। महावीर से। और बंधन न हो तो ही समझ हो सकती है, अंडरस्टैंडिग हो सकती है।
ओशो
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