रविवार, 14 जुलाई 2024

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*खरी कसौटी पीव की, कोई बिरला पहुँचनहार ।*
*जे पहुँचे ते ऊबरे, ताइ किये तत सार ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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गुरु बोलता है किसी दूर आकाश से--और शिष्य पृथ्वी पर गड़ा है। जैसे आकाश पृथ्वी से बोले ! बड़ी भाषा का भेद हो जाएगा। फिर जब गुरु बोलता है और शिष्य समझता है तो निश्चित ही कुछ का कुछ समझता है। इसलिए तो दुनिया में इतना विवाद, इतना उपद्रव। यह शिष्यों के कारण है, यह गुरुओं के कारण नहीं है।"
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"तुम गुरु के हर काम में बाधा भी डालोगे, क्योंकि गुरु तुम्हें तोड़ेगा। टूटना कौन चाहता है ! तुम गुरु के पास आए थे, टूटने नहीं, मिटने नहीं--कुछ बनने आए थे। लेकिन तुम्हें बनने की प्रक्रिया का कोई पता नहीं है। बनने की प्रक्रिया में तोड़ना अनिवार्य है, प्राथमिक भूमिका है।"
ओशो
हरि बोलौ हरि बोल
(संत सुन्दंर दास) प्रवचन-09,
सदगुरु की महिमा

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