बुधवार, 10 जुलाई 2024

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*आंगण एक कलाल के, मतवाला रस मांहि ।*
*दादू देख्या नैन भर, ताके दुविधा नांहि ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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सदगुरु से जो लगाव है, जो नेह है, जो प्रीति है, वह उन दो आंखों से प्रीति है, जिनमें परमात्मा की छबि दिखाई पड़ती है। सदगुरु कौन ? जिसकी आंख में तुम्हें परमात्मा की थोड़ी आभा दिखाई पड़ जाए–जरा सी झलक !
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तुमने परमात्मा नहीं देखा, तुम्हें परमात्मा की कोई खबर नहीं है, लेकिन किसी ने देखा है तो उसकी आंख में कुछ तो अक्स रह जाएगा, कुछ तो लकीरें तैरती रह जाएंगी, कुछ तो बिंब रह जाएगा। उसकी आंखों में कुछ तो परमात्मा को देखने का भाव झलकेगा। कुछ तो तैरता हुआ मिल जाएगा। तुमने नहीं सुना वह संगीत, लेकिन जिसने सुना है उसके पास उसकी शांति में कुछ तो स्वर गूंजते होंगे।
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मैं हैरि रहूं नैना सो नेह लगाई॥
राह चलत मोहि मिलि गए सतगुरु,
सो सुख बरनि न जाई।
राह चलत–जो खोजता है उसको ही मिलते हैं सदगुरु। घर बैठे रहे, खोजा ही नहीं तो सदगुरु नहीं मिलते। 
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जो विद्यार्थी बनता है, वही एक दिन शिष्य बनता है। जो विद्यार्थी ही नहीं बनता वह तो शिष्य कैसे बनेगा ? जो एक दिन जिज्ञासु बनता है, वही एक दिन मुमुक्षु हो जाता है। चलना तो पड़ेगा।
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राह चलत मोहि मिल गए सतगुरु, 
सो सुख बरनि न जाई।
रास्ते में आज उनसे मुलाकात हो गई
जी डर रहा था जिससे, वही बात हो गई
गुरु जब मिलता है तो तुमने चाहा था वही मिला, और फिर भी जी धक से रह जाता है। क्योंकि गुरु मृत्यु भी है और जीवन भी।
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देइ के दरस मोहि बौराये…
और जैसे ही गुरु का दर्शन मिला कि तुम पागल हुए। तुम पागल न हो जाओ तो गुरु से मिलन हुआ ही नहीं।
देई के दरस मोहि बौराये, ले गए चित्त चुराई।
जिस गुरु के पास जाकर तुम्हारा चित्त न चुरा लिया जाए, वह गुरु नहीं। जिसके पास जाकर तुम अपना चित्त न गंवा बैठो वह गुरु नहीं।
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हमारे पास एक बहुत प्यारा शब्द हैः हरि। हरि का अर्थ होता है, चोरः हर ले जाने वाला। हमने भगवान को नाम दिया हरि का। दुनिया में ऐसा कोई शब्द नहीं किसी भाषा में। किसी देश ने इतनी हिम्मत नहीं की कि भगवान को चोर कहे। यह तो जानने वाले ही कह सकते हैं।

भगवान चोर है ! चोर इस अर्थ में कि एक बार उस तरफ दृष्टि गई कि तुम्हारा सब गया, सब लुटा। फिर तुम बच नहीं सकते। पहली घटना गुरु के पास घटती है। उसी बड़े चोर के छोटे संगी-साथी !
देइ के दरस मोहि बौराये, ले गए चित्त चुराई॥
एक पागलपन ! एक ऐसा पागलपन छा जाता है, एक ऐसी मस्ती, एक ऐसी दीवानगी, एक ऐसी बेखुदी, जो अपरिचित है।
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उठ कर तो आ गए तेरी बज्म से मगर
कुछ दिल ही जानता है किस दिल से आए हैं
फिर उठते भी नहीं बनता, चलते भी नहीं बनता, जाते भी नहीं बनता। धनी धरमदास कबीर को मिले सो फिर घर नहीं लौटे। गए सो गए! घर खबर भेज दी कि मैं पागल हो गया हूं। समझ लेना और मुझे क्षमा कर देना।
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उठ कर तो आ गए तेरी बज्म से मगर
कुछ दिल ही जानता है किस दिल से आए हैं
और पागलपन तो आता ही है। फकीरों का एक समुदाय बाउल कहा जाता है। बाउल का अर्थ होता हैः बावला, पागल। सूफियों में फकीरों की एक अवस्था होती है, मस्त। मस्त का अर्थ होता है, दीवाना–जिसे होश नहीं रहा, हवास नहीं रहा; जिसे जिंदगी के हिसाब-किताब नहीं रहे। सभी पागल परमात्मा के प्यारे नहीं होते, लेकिन सभी परमात्मा के प्यारे जरूर पागल होते हैं।
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लमहे यह आ गए हैं तेरी इंतजार के
मैं खुद जवाब देता हूं तुझको पुकार के
खूब पागलपन चढ़ता है। खुद ही भक्त भगवान की तरफ से जवाब भी देने लगता है, बातचीत होने लगती है।
ओशो

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