रविवार, 7 जुलाई 2024

*श्री रज्जबवाणी, साधु मिलाप मंगल उच्छाह का अंग ७*

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*दादू काढे काल मुखि, गूंगे लिये बुलाइ ।*
*दादू ऐसा गुरु मिल्या, सुख में रहे समाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
साधु मिलाप मंगल उच्छाह का अंग ७
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ज्ञान के थान विवेक के बासन१,
देश दया के दया करि आये ।
आनन्द कंद२ विलास३ की राशि,
सुखहु के समुद्र सु भाग्य सौं पाये ॥
भक्ति की भूमि भंडार भजन्न४ के,
प्रेम के पुंज मिले मन भाये५ ।
प्राण के प्राण रु जीव की जीवन,
रज्जब देखि सुदर्श अघाये६ ॥२॥
ज्ञान के स्थान, विवेक के बरतन१ और दया के देश रूप संत दया करके पधारे हैं ।
ब्रह्मानन्द के मूल२ हेतु, हर्ष३ की राशि, सुख के समुद्र रूप संत भाग्य से प्राप्त हुये हैं ।
भक्ति की भुमि, भजन४ के भण्डार, प्रेम के पुंज, मन को प्रिय५ लगने वाले संत मिले हैं ।
संत प्राणों के प्राण हैं, जीव की जीवन रूप हैं । हम संतों के दर्शन करके ही तृप्त६ हुये हैं ।
(क्रमशः)

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