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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १४१/१४४*
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आ आगै ऊभा खड़ा, जै हरि जै जै कार ।
कहि जगजीवन का कँवल, लीन रहै तजि मार ॥१४१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु आगे कृपा करने को तत्पर खड़े रहते हैं । आपकी जय हो प्रभु । संत कहते हैं कि इस जीवन का कमल तो संसारिक विषयों की मार छोड़कर प्रभु में ही लीन रहता है ।
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कहि जगजीवन का सफल, बड़ बड़६ मौटे मीर७ ।
केसरि उतपति जीव मते, रांम भगति बिन नीर ॥१४२॥
(६. बड़ बड़=बड़े बड़े) (७. मोटे मीर=बलवान् अधिकारी)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि बड़े बड़े बलवान जिनके बल से सफल होते हैं । वह राम स्मरण ही है राम भक्ति के बिना जीव का कुछ नहीं हो सकता है चाहे वह कितना बलवान हो सिंह क्यों न हो वह जल सा ही रहेगा ।
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ना हरि भगति निवास हरि, बनिज बस्त८ बिलास ।
उभै अषिर मंहीं रांम लहै, सु कहि जगजीवनदास ॥१४३॥
(८. बनिज बस्त=बेचने योग्य वस्तुएँ)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु की भक्ति प्रभु भावना के बिना कुछ भी नहीं है । कथा इत्यादि शब्द कौशल से वह जीविका का साधन भले ही हो । र तथा म दो अक्षर ही राम से मिलवा सकते हैं । ऐसा संत कहते हैं ।
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लू९ ताती सी१० लागड़ी११, गतम नरम सुख एह ।
कहि जगजीवन रांम रटि, हरि भजि ढांकी देह ॥१४४॥
(९. लू=ज्येष्ठ मास की गरम हवा) (१०. ताती सी=गरम जैसी) (११. लागड़ी=दुर्बल)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि ज्येष्ठ माह में गर्म लू के चलने से देह गरम हो कर नमनीय रहती है यदि वह कृश हो तो । है जीवात्मा इन संसारिक तापों से बचने के लिये तू राम नाम का आवरण ओढ कर इस देह को तापों से बचा ।
(क्रमशः)
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