शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

हरि भजि उतरौ पार

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*साहिब मिलै तो जीविये, नहीं तो जीवै नांहि ।*
*भावै अनंत उपाय कर, दादू मूवों मांहि ॥*
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उपदेश चेतावनी ॥
गुर सिखयौ ब्यौहार, प्राणी लाहौ लै ।
हरि भजि उतरौ पार, रे प्राणी लाहौ लै ॥टेक॥
येक पलक नहिं पाइये रे, धरती पग धरताँ ।
जुग हटवाड़ौ जाइलौ रे, बार न बीखरताँ ॥
मनिख जमारौ दुलभ तुम्हारौ, बारंबार न होइ ।
रामभजन करि लाहौ लै रे, जिनि जाइ पूंजी खोइ ॥
पलक माहिं पलटै सदा रे, घड़ी घड़ावलि थाइ ।
किसौ भरोसौ काल्हि कौ, आव घटै दिन जाइ ॥
हरि सुमिरीजै सुक्रित कीजै, आनँद प्रेम अघाइ ।
बषनां हरि भजि लाहौ लै ज्यूँ, कलतर मूल न जाइ ॥१२॥
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गुर = श्रोत्रिय = अधीतवेद और ब्रह्मनिष्ठ = ब्रह्म की अपरोक्षानुभूतियुक्त । सिखयौ = सिखाया हुआ, बताता हुआ । ब्यौहार = साधनामार्ग । लाहौ = लाभ । धरती पग धरताँ = जब मनुष्य मरने लगता है, तब उसे पलंग से उतार का पृथिवी पर बैठा अथवा सुला देते हैं, यहाँ उसी का संकेत है । हटवाड़ौ = साप्ताहिक बाजार, यहाँ सौवर्षीय जीवन । जुग = जीवन । बीखरताँ = सिमटने में । जमारौ = जीवन, शरीर । जिनि जाइ = मत चला जा । घड़ी घड़ावलि = जीवन रूपी घड़ी के श्वास रूपी घड़ावलि कब थाइ = स्थिर = रुक जायेंगे, पता नहीं । आव = आयु । सुक्रित = दान-पुण्य, परोपकार, अपने कर्मादि । अघाइ =निमग्न । कलतर मूल = चौरासी लाख योनियों में मूल = सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जन्म रूपी कल्पवृक्ष ।
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बषनांजी ने यह उपमा बहुत ही सटीक दी है । कल्पवृक्ष से जो मांगो, वही मिलता है । अच्छा या बुरा । ऐसे ही मनुष्य जन्म से भगवत्प्राप्ति भी हो सकती है और विषयभोगों में लगे रहने से नरकों की भी प्राप्ति होती है । ‘आत्मैव ह्यात्मनौ बंधुरात्मैव रिपुरात्मनः’ ॥गीता ६/५॥
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हे प्राणी ! तुझे ब्रहमनिष्ठ और श्रोत्रिय गुरु ने जो साधनमार्ग सिखाया है, उसही का आश्रय लेकर मनुष्य जन्म पाने का लाभ प्राप्त कर । हे प्राणी ! हरि का भजन-ध्यान करके जन्म-मरण रूपी संसार-सागर के पार चले जा, अवसर का लाभ ले ।
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पृथिवी पर पैर रखते हुए तुझे एक क्षण भी नहीं लगेगा क्योंकि तेरे जीवन रूपी निश्चित किन्तु अज्ञात अवधि वाले बाजार को सिमटने में तनिक भी समय नहीं लगेगा ।
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तेरा मनुष्य योनि का जन्म अत्यन्त दुर्लभ है जो बारबार नहीं मिलता । तू रामजी का भजन करके मनुष्य जन्म मिलने के अवसर का लाभ प्राप्त कर ले । इस अमूल्य पूंजी को योंही मत गँवाकर जा ।
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एक क्षण में ही सब कुछ पलट जायेगा । (जिन्हें तू अपना-अपना कहता है, वे एक क्षण में ही पराये हो जायेंगे । जैसे ही तू शरीर से निकलेगा, तेरे अपने ही तेरे इस शरीर को एक क्षण भी घर में रखना बर्दाश्त नहीं करेंगे ।) जीवन के श्वास स्थिर हो जायेंगे(तू मर जायेगा अर्थात् शरीर को छोडकर तू चला जायेगा) आयु दिनों दिन घटती जा रही है, कल आयेगा कि नहीं, इसका क्या भरोसा !
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अतः हरि का स्मरण ध्यान कर, सुकृत = अच्छे कर्म कर और परमात्मा के प्रेमानन्द में निमग्न हो जा । बषनांजी कहते हैं, हरि का भजन-स्मरण करके मनुष्य जीवन प्राप्त करने का लाभ प्राप्त कर ले ताकि मनुष्य जन्म रूपी कल्पवृक्षात्मक पूंजी व्यर्थ न जा सके ॥१२॥
(क्रमशः)

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