रविवार, 22 सितंबर 2024

*श्री रज्जबवाणी, उपदेश का अंग ८*

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*दादू जिस घट दीपक राम का,*
*तिस घट तिमिर न होइ ।*
*उस उजियारे ज्योति के, सब जग देखै सोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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उपदेश का अंग ८
जे पर१ साधु के साची जु उपजैं,
तो कहा माया रू मोह करेगो ।
ज्यों शशि सूर घटा मधि उगत,
तो व२ कहा कछु आभा३ अरेगो४ ॥
कमल को नाल पर्यो पग हाथी के,
तो कहा बेड़ी को काम सरेगो५ ।
जेरु सुमेरु समुद्र में डारिये,
रज्जब सो धर६ जाय परैगो ॥६॥
जैसे चन्द्र सूर्य, बादलों की घटा में उदय होते हैं तब वे२ चन्द्र सूर्य कुछ बादलों३ से अड़कर४ रुक सकते हैं क्या ?
हाथी के पैर में कमल का नाल पड़ जाय तो क्या उससे बेड़ी का काम हो जायगा५ ?
और यदि सुमेरु पर्वत समुद्र में डाला जाय तो क्या वह जल पर रुक सकेगा ? वह तो पृथ्वी६ पर ही जाकर पड़ेगा ।
वैसे ही यदि साधु के ज्ञान वैराग्य रूप सच्ची पंख१ उत्पन्न हो जाँय तब माया मोह उसका क्या करेंगे ? वह तो माया मोह से न कर ब्रह्म को ही प्राप्त होगा ।
(क्रमशः)

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