सोमवार, 23 सितंबर 2024

*नाथ हमें कर दे तब भायो*

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*हिरदै राम सँभाल ले, मन राखै विश्‍वास ।*
*दादू समर्थ सांइयां, सब की पूरै आस ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*लाल मिले वन मांहि सुनी चलि,*
*आत चिंतामणि हेत जनायो ।*
*मान दियो उठि दूध रु भात हि,*
*देत भयो हरि ताहि पठायो ।*
*लेत नहीं तुमको पठयो प्रभु,*
*नाथ हमें कर दे तब भायो ।*
*पात नहीं युग देखत कौतुक,*
*श्याम जबै इक और खिनायो ॥४१८॥*
*॥ श्रीनिम्बादित्य संप्रदाय का वर्णन सम्पन्न ॥*
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चिन्तामणि ने सुना कि विल्वमंगलजी को वृन्दावन में विहारीलालजी मिले हैं और उन पर भगवान् की विशेष कृपा हुई है । तब अति हर्षित हुई और वृन्दावन में आपके पास आई । आपने उठकर उसका सन्मान करते हुए प्रेम का परिचय दिया ।
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श्रीविहारीलालजी विल्वमंगलजी को अपना प्रेमी भक्त जान कर उनके लिए प्रतिदिन ही अपना प्रसाद दूध भात भेजा करते थे । सो चिन्तामणि को दिया । चिन्तामणि ने पूछा- "यह प्रसाद कहाँ से और कैसे आया है, किसने दिया है?" विल्वमंगलजी ने कहा- " स्वयं भगवान् ही कृपा करके भेज देते हैं ।"
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तब वह बोली- "मैं नहीं लूँगी, कारण-प्रभु ने तो आपके लिए भेजा है । वे प्रभु कृपा कर के जब अपने हाथों से ही देंगे, तब मुझे प्रिय लगेगा अर्थात् तब ही लूंगी ।" अब उसे दोनों ही नहीं पीते । दूध भात का दोना रखा है और दोनों भजन कर रहे हैं ।
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विल्वमंगलजी की भक्ति और चिन्तामणि का सच्चा प्रेम प्रण रूप ऐसा कौतुक प्रभु ने देखा तब, भाववश भगवान् ने दर्शन देकर दूध भात का वैसा ही एक दोना और भेज दिया । अब तो दोनों ही कृतकृत्य होकर भगवान् का धन्यवाद करते हुए और गुण गाते हुये दोनों ने भगवत् प्रसाद पाया । प्रभु के प्यारे प्रेमी भक्तों की जय हो ! ॥
(क्रमशः)

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