🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*देही मांही देव है, सब गुण तैं न्यारा ।*
*सकल निरंतर भर रह्या, दादू का प्यारा ॥*
.
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
==============
भक्तों ने मिठाइयाँ लाकर श्रीरामकृष्ण के सामने रखीं । उनमें से एक छोटासा टुकड़ा ग्रहण करके श्रीरामकृष्ण ने सुरेन्द्र के हाथ में प्रसाद की थाली दी और कहा, 'दूसरे भक्तों को भी प्रसाद दे दो ।' सुरेन्द्र नीचे गये । प्रसाद नीचे ही दिया जायगा ।
.
श्रीरामकृष्ण (केदार से) - तुम समझा देना । जाओ बकझक करने की मनाही कर देना ।
मणि पंखा झल रहे हैं । श्रीरामकृष्ण ने पूछा, 'क्या तुम नहीं खाओगे ?' उन्होंने प्रसाद पाने के लिए नीचे मणि को भी भेज दिया ।
सन्ध्या हो रही है । गिरीश और श्री 'म' (मास्टर) तालाब के किनारे टहल रहे हैं ।
.
गिरीश - क्यों जी, सुना है, तुमने श्रीरामकृष्ण के सम्बन्ध में कुछ लिखा है ?
श्री 'म' - किसने कहा आपसे ?
गिरीश - मैंने सुना है । क्या मुझे दोगे - पढ़ने के लिए ?
श्री 'म' - नहीं, जब तक मैं यह न समझ लूँ कि किसी को देना उचित है, मैं न दूँगा । वह मैंने अपने लिए लिखा है, किसी दूसरे के लिए नहीं ।
गिरीश - क्या बोलते हो ?
'श्री 'म' - जब मेरा देहान्त हो जायगा तब पाओगे । “श्रीरामकृष्ण - अहेतुक कृपासिन्धु”
.
सन्ध्या होने पर श्रीरामकृष्ण के कमरे में दीपक जलाये गये । ब्राह्मभक्त श्रीयुत अमृत बसु उन्हें देखने के लिए आये हैं । श्रीरामकृष्ण उन्हें देखने के लिए पहले ही से उत्सुक थे । मास्टर तथा दो चार भक्त और बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण के सामने केले के पत्ते में बेला और जुही की मालाएँ रखी हुई हैं । कमरे में सन्नाटा छाया है । एक महायोगी मानो चुपचाप योगयुक्त होकर बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण एक-एक बार मालाओं को उठा रहे हैं । जैसे गले में डालना चाहते हो ।
.
अमृत - (सस्नेह) - क्या मालाएँ पहना दूँ ?
मालाएँ पहन लेने पर श्रीरामकृष्ण अमृत से बड़ी देर तक बातचीत करते रहे । अमृत अब चलनेवाले हैं ।
श्रीरामकृष्ण - तुम फिर आना ।
अमृत - जी, आने की तो बड़ी इच्छा है । बड़ी दूर से आना पड़ता है, इसलिए हमेशा मैं नहीं आ सकता ।
श्रीरामकृष्ण - तुम आना, यहाँ से बग्घी का किराया ले लिया करना ।
अमृत के लिए श्रीरामकृष्ण का यह अकारण स्नेह देखकर भक्तगण आश्चर्यचकित हो गये ।
.
दूसरे दिन शनिवार हैं, २४ अप्रैल । श्री 'म' अपनी स्त्री तथा सात साल के लड़के को लेकर श्रीरामकृष्ण के पास आये हैं । एक साल हुआ, उनके एक आठ वर्ष के लड़के का देहान्त हो गया है । उनकी स्त्री तभी से पागल की तरह हो गयी है । इसीलिए श्रीरामकृष्ण कभी कभी उसे आने के लिए कहते हैं ।
रात को श्रीमाताजी ऊपरवाले कमरे में श्रीरामकृष्ण को भोजन कराने के लिए आयी । श्री 'म' की स्त्री उनके साथ साथ दीपक लेकर गयी ।
.
भोजन करते हुए श्रीरामकृष्ण उससे घर-गृहस्थी की बातें पूछने लगे । फिर उन्होंने कुछ दिन श्रीमाताजी के पास आकर रहने के लिए कहा, इसलिए कि इससे उसका शोक बहुत-कुछ घट जायगा । उसके एक छोटी लड़की थी । श्रीमाताजी उसे मानमयी कहकर पुकारती थीं । श्रीरामकृष्ण ने उसे भी ले आने के लिए कहा ।
.
श्रीरामकृष्ण के भोजन के पश्चात् श्री 'म' की स्त्री ने उस जगह को साफ कर दिया । श्रीरामकृष्ण के साथ कुछ देर तक बातचीत हो जाने के बाद श्रीमाताजी जब नीचे के कमरे में गयीं, तब श्री 'म' की स्त्री भी उन्हें प्रणाम करके नीचे चली आयी ।
रात के नौ बजे का समय हुआ । श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ उसी कमरे में बैठे हैं । गले में फूलों की माला पड़ी हुई है । श्री 'म' पंखा झल रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण गले से माला हाथ में लेकर अपने-आप कुछ कह रहे हैं । उसके पश्चात् प्रसन्न होकर उन्होंने श्री 'म' को वह माला दे दी ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें