मंगलवार, 24 दिसंबर 2024

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*स्वांग सती का पहर कर,*
*करै कुटुम्ब का सोच ।*
*बाहर शूरा देखिये, दादू भीतर पोच ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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ज्योतिषियों के पास कोई आध्यात्मिक पुरुष थोड़े ही जाता है। ज्योतिषियों के पास तो संसारी आदमी जाता है। कहता है : भूमि-पूजा करनी है, नया मकान बनाना है, तो लगन-महूरत; कि नई दुकान खोलनी है, तो लगन-महूरत; कि नई फिल्म का उद्घाटन करना है, लगन महूरत; कि शादी करनी है बेटे की, लगन-महूरत।
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संसारी डरा हुआ है : कहीं गलत न हो जाए! और डर का कारण है, क्योंकि सभी तो गलत हो रहा है; इसलिए डर भी है कि और गलत न हो जाए! ऐसे ही तो फंसे हैं, और गलत न हो जाए ! संसारी भयभीत है। भय के कारण सब तरफ सुरक्षा करवाने की कोशिश करता है। और जिससे सुरक्षा हो सकती है, उस एक को भूले हुए है।
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वही तो पलटू कहते हैं कि जिस एक के सहारे सब ठीक हो जाए, उसकी तो तू याद ही नहीं करता; और सब इंतजाम करता है : लगन-महूरत पूछता है। और एक विश्वास से, एक श्रद्धा से, उस एक को पकड़ लेने से सब सध जाए–लेकिन वह तू नहीं पकड़ता, क्योंकि वह महंगा धंधा है। उस एक को पकड़ने में स्वयं को छोड़ना पड़ता है; सिर काट कर रखना होता है।
अजहूं चेत गंवार, प्रवचन#८, ओशो

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