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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू समर्थ सब विधि सांइयाँ,*
*ताकी मैं बलि जाऊँ ।*
*अंतर एक जु सो बसै, औरां चित्त न लाऊँ ॥*
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*परब्रह्म-परमात्मा की सर्वसमर्थता ॥*
हूँ बारी रे गुर अपणा ऊपरि, जिन यहु चटा पढ़ाया ।
लिषणा चुखणा ठाँवाँ ठेका, घट ही माहिं बताया ॥टेक॥
लांबी लेखणि लांबा कागद, लांबा लिखणैंहारा ।
वोछा लेखा कदे न मांडै, साचा धनी हमारा ॥
दरिया दोति पार मसि नाहीं, सारूँ कौं लिखि देसी ।
असा बिणज ब्यौपार करीज्यौ, अंति वै लेखा लेसी ॥
तीनि लोक जाकै लिखि मेल्है, अणलिखिया कछु नाहीं ।
रज रज रती रती करि तिल तिल, सब है लेखै माहीं ॥
ना कछु घटै बधै कछु नाहीं, ताका लिखिया होई ।
अनत लोक परि लेखणि ताकी, बषनां साहिब सोई ॥२८॥
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बारी = न्यौछावर । चटा = विद्या, चटशाला = विद्यालय । चुखणा = पढ़ना, व्यवहार में बोला जाने वाला युग्म शब्द “लिखना-पढ़ना” । ठाँवाँ = यथार्थ । ठेका = स्थान, टिकने का स्थान । वोछा = अधूरा । दोति = दावात, स्याहीपात्र । असि = स्याही ।
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भारत में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है, भगवान् के यहाँ पोपा बाई का राज नहीं है । वहाँ छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी सभी घटनाएँ दर्ज होती है और वह सभी पर सम्यक् विचार करके निर्णय करता है । वह इतना महान सामर्थ्यवान है कि उसके यहाँ तिलमात्र के बराबर भी घालमेल नहीं होता । इन्हीं विचारों को इस पद में व्यक्त किया गया है ।
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मैं अपने गुरुमहाराज पर न्यौछावर होता हूँ जिन्होंने मुझे अग्रांकित विद्या पढ़ाई है = विवेक प्रदान किया है । उन्होंने लिखने-पढ़ने का यथार्थ स्थान घट = शरीर के भीतर ही हृदय को बताया है ।
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उस महान लिखने वाले परमात्मा के हाथ में लिखने के लिये लेखनी बहुत बड़ी है तो लिखने में काम आने वाला कागज भी बहुत बड़ा है । मेरा सच्चा स्वामी कभी भी आधा-अधूरा लेखा नहीं लिखता ।
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लिखने के उपकरणों में उसके पास समुद्र के समान अपरिमित परिमाणवाले दावात है और उसमें रखी जाने वाली स्याही भी अपरिमित है । जो लिखने योग्य सभी बातों को लिख लेने के लिये पूर्णतः पर्याप्त है ।
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हे अचेत = असावधान मानव ! तू ऐसा वाणिज्य-व्यापार = कार्य कर जिससे तुझे धर्मराज के सामने किसी प्रकार की कोई भी असुविधा न हो क्योंकि मरने पर धर्मराज समस्त लेखों को पढ़कर ही उनके अनुसार अच्छा-बुरा फल प्रदान करेगा ।
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वह तीनों लीकों के जीवों के कार्यों को अपने यहाँ लिखकर रखता है । बिना लिखा कुछ भी नहीं रहता है । मिट्टी के कण के बराबर छोटे-छोटे कर्म भी तिलतिल = विगतवार उसके यहाँ रखे जाने वाले लेखों में दर्ज होता है ।
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उसके द्वारा लिखे लेखों में से न कुछ घटता है और न कुछ बढ़ता है । लोक अनंत है फिर भी उसके यहाँ सभी के लेख लिखे जाते हैं । किसी को छोड़ा नहीं जाता । बषनांजी कहते हैं, जो इतना महान् सामर्थ्य वाला है, वही मेरा स्वामी है ॥२८॥
(क्रमशः)
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