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*अनाथों का आसरा, निरधारों आधार ।*
*निर्धन का धन राम है, दादू सिरजनहार ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नीच बुलाय लिये कर पाँवहि,*
*काटि कुआ महि डारिसु आये ।*
*राम भजे करुणा हि करे,*
*गुरु गोरख आय रु बोल सुनाये ॥*
*साँच कहो सत नांहि गयो तुम,*
*पारख लेन हि तार झुलाये ।*
*छींवत तार भये कर पाद हु,*
*शिष्य कस्यो हरि के गुण गाये ॥४२५॥*
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राजा ने मानव मारने वाले नीच जल्लादों को बुलाकर कहा-"पूर्णमल को वन में ले जाकर मार आओ ।" उन लोगों ने पूर्णमल के हाथ पैर काट उसे एक पानी रहित कूप में डाल दिया और आ गये ।
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पूर्णमल कूप में प्रभु से दया करने की प्रार्थना करते हुए राम भजन कर रहे थे । गोरक्षनाथ, मत्स्येन्द्रनाथजी आदि कई संत उधर से जा रहे थे । कूप में मनुष्य का बोलना सुनकर वे सब कूप पर गये और देखा कि हाथ पैर कटा हुआ एक मनुष्य कूप में पड़ा हुआ जोर जोर से राम राम कर रहा है । गोरक्षनाथजी ने पूर्णमल को पूछा, तुम कौन हो और यह दशा तुम्हारी कैसे हुई । पूर्णमल ने सब सत्य सत्य बता दिया ।
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गोरक्षजी ने कहा- "तुम सत्य कहो कि तुम्हारा सत्य नहीं गया है?" पूर्णमल ने कहा- "मैं तो सत्य ही कहता हूँ और आप परीक्षा कर लें ।" परीक्षा के लिये गोरक्षनाथजी ने कच्चे सूत का तार कूप में लटकाया ।
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उस तार के छूते ही पूर्णमल के हाथ पैर ज्यों के त्यों पूर्ववत् पीछे आ गये । तब पूर्णमल को उसी तार से कूप के बाहर निकाल कर शिष्य बना लिया और चौरंगी नाम रख दिया । चौरंगीनाथ ने उक्त प्रकार गुरुकृपा से ठीक होकर हरि के गुण गाये और अच्छे भक्त हुए ।
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प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर से प्रकाशित पुस्तक के परिशिष्ट १ में आगे नीचे लिखी चौपाई और दो दोहे भी आये हैं । उनका भाव तो ऊपर आ चुका है । ज्ञात होता है कि किसी कथावाचक ने अपनी पुस्तक में पूर्णमल चरित्र से लिखा हो । उससे प्रति लिपी जो हुई है उन पुस्तकों में आती हैं । सब में नहीं सो यहाँ लिख दी जाती हैं अर्थ तो स्पष्ट ही है ॥
(क्रमशः)

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