🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू एता अविगत आप थैं, साधों का अधिकार ।*
*चौरासी लख जीव का, तन मन फेरि सँवार ॥*
.
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
===============
*गैनीनाथजी*
गैनीनाथजी नासिक के ब्रह्मगिरि की परिक्रमा के मार्ग में अपने मठ में रहते थे । ज्ञानदेवजी ने बड़े भ्राता निवृत्तिनाथजी के गुरु आप ही हैं । जब निवृत्तिनाथ सात वर्ष के थे तब ये माता पिता भाई बहिन के साथ त्र्यम्बकेश्वर क्षेत्र में ही रहते थे । रात के समय ये सभी ब्रह्मगिरि की परिक्रमा करने जा रहे थे ।
.
मार्ग में सामने एक बाघ गर्जता हुआ आ गया । इनके पिता घबरा गये । बाघ से बचकर भागने का मार्ग खोजने लगे । इसी बीच में निवृत्तिनाथ इन से बिछुड़ के गैनीनाथजी की गुफा में पहुँच गये थे । गैनीनाथजी ने निवृत्तिनाथ को सात दिन अपने पास रखकर योगशिक्षा दी । फिर पुनः निवृत्तिनाथ माता पिता से आ मिले थे । चर्पटनाथ की कथा आगे आ रही है ।
.
*चौरंगीनाथजी*
*छप्पय-*
*धर्मशील सत राख तैं, चौरंगी कारज सरे ।*
*अद्भुत रूप निहार, दौर कर माई पकर्यो ।*
*दामन१ लीयो फारि, जोर करि बाहर निकर्यो ॥*
*राणी करी पुकार, पुत्र अच्छा ही जाया ।*
*राजा मन पछताय, हाथ पग दूर कराया ॥*
*राघव प्रगटे परम गुरु, कर पद ज्यों के त्यों करे ।*
*धर्मशील सत राख तैं, चौरंगी कारज सरे ॥३१४॥*
.
धर्म, शीलव्रत और सत्य रखने से ही चौरंगी(पूर्णमल) के कार्य सिद्ध हुए थे । पूर्णमल पंजाब प्रान्त के स्यालकोट नगर के राजा जिनने शकाब्द नामक संवत चलाया था, उन शालीवाहन के पुत्र थे ।
.
जब पूर्णमल का जन्म हुआ था तब ज्योतिषियों ने कहा था-१२ वर्ष तक पिता को इसका मुख नहीं देखना चाहिये । यदि देखा जायगा तो इसको तथा पिता को मृत्यु का भय है । तब उसको ऐसे स्थान में रख दिया था जिससे उसका मुख राजा न देख सके ।
.
१२ वर्ष पूर्ण होने पर आये तब पिता ने पूर्णमल को देखने की शीघ्रता की । इस भूल के कारण एक दिन पहले ही राजा ने उसका मुख देख लिया था । इसी से पूर्णमल में नीचे लिखी विपत्ति आई थी ऐसा कहते हैं । पिता पुत्र को देखकर अति प्रसन्न हुए ।
.
विवाह का समय होने पर किसी राजा ने अपनी पुत्री पूर्णमल को देने की इच्छा प्रकट की । शालीवाहन ने पूर्णमल को विवाह के लिए कहा किन्तु पूर्णमल नट गया । तब राजा ने उक्त राजकन्या के साथ स्वयं विवाह कर लिया । पूर्णमल के पिता की इस छोटी राणी का नाम लूणा था । एक दिन कार्यवश पूर्णमल लूणा के पास गये थे ।
.
जब पीछे जाने लगे तब पूर्णमल के अद्भुत सुन्दर रूप को देख कर वह पूर्णमल की सौतेली माता कामवश हो, उठ कर दौड़ी ! और पूर्णमल का हाथ पकड़ कर बोली- ठहर जाओ नहीं, तुम मुझे रति संग का सुख दो । पूर्णमल बोला- आप तो मेरी माता है, यह क्या कह रही हो ? इस पर भी उसे लज्जा नहीं आई, उसने पुनः कहा ।
.
तब पूर्णमल वहाँ से जाने लगे । लूणा ने बल से पूर्णमल का हाथ पकड़ लिया । किन्तु पूर्णमल ने झटका देकर अपना हाथ छुड़ा लिया । इस प्रकार बल करके बाहर निकल गये । तब रानी ने अपनी ओढनी का पल्ला राजा को बताने के लिये फाड़ लिया और राजा के आने की प्रतिक्षा करने लगी ।
.
राजा के आने पर क्रोध में भर कर राजा को कहा- आपने अच्छा पुत्र उत्पन्न किया है ? राजा ने पूछा क्या बात है ? रानी बोली- "बात क्या कहूँ, कहते भी लज्जा आती है । आज उस दुष्ट ने मेरा सतीत्व बिगाड़ने में कमी नहीं रखी थी ।
भगवान् ने ही मुझ को बल दिया उसी से मैने बलपूर्वक उसके हाथ से अपना वस्त्र छुड़ा कर मैं भागी । देखिये मेरा आँचल फटा पड़ा है । रानी की बात सुन कर राजा मन में बड़ा ही पश्चात्ताप करने लगे । फिर रानी के कथनानुसार पूर्णमल के हाथ पैर काट कर मारने की आज्ञा व्याधों को दे दी ।
.
उन लोगों ने पूर्णमल को हाथ पैर काट कर एक कूप में डाल दिया । उधर से मत्स्येन्द्रनाथ, गोरक्षनाथ आदि नाथ जा रहे थे । उन लोगों को कूप से मानव का शब्द सुनने पर संशय हो गया कि कूप में कौन बोल रहा है । कूप पर आ कर देखा तो ज्ञात हुआ, एक हाथ पैर कटा हुआ मनुष्य हरिनाम बोल रहा है ।
.
गोरक्षनाथजी ने पूछा, तुम कौन हो और यह दशा तुम्हारी कैसे हुई ? पूर्णमल ने सब बात बता दी । तब उन परम गुरु ने सत्य की परीक्षा लेकर पूर्णमल के हाथ पैर पूर्ववत ही कर दिये । हाथ पैर कटे हुए मिलने से चौरंगीनाथ नाम रख दिया" ॥३१४॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें