शनिवार, 4 जनवरी 2025

*४४. रस कौ अंग ८५/८८*

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*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४४. रस कौ अंग ८५/८८*
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रहसी ते रस पीवसी, जासी ते फिरि आइ ।
कहि जगजीवन रहसी जासी, सब ऊधरसी५ भाइ ॥८५॥
(५. ऊधरसी=उद्धार होगा)
संत जगजीवन जी कहते हैं कि जो परमात्मा के आश्रित हो रहेंगे वे आनंद रस का पान करेंगे और जो बिना पीये अर्थात स्मरण बिना जायेंगे वे फिर जन्म लेंगे । संत कहते हैं कि रहने व जानेवालों सभी का उद्धार होगा ।
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सबै उधारैं६ रांमजी, जे हरि हूंहि७ दयाल ।
कहि जगजीवन हरि भगत, हरि भज बंचै काल ॥८६॥
(६. उधारैं=उद्धार करैं) (७. हूंहि=हों)
संत जगजीवन जी कहते हैं कि जब प्रभु दया करते हैं तो सब जीवों का उद्धार करते हैं । संत कहते हैं कि प्रभु भक्त परभु स्मरण द्वारा ही काल से बचते हैं ।
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सिघ्र१ कारज होइ सिधि, जे जन सुमिरैं नांम ।
कहि जगजीवन छिप्रमेव२ हरि, ह्रिदै बिराजै रांम ॥८७॥
{१. सिघ्न=शीघ्र (जल्दी ही)} (२. छिप्रमेव=क्षिप्रमेव=तत्काल ही)
संत जगजीवन जी कहते हैं कि यदि जीव स्मरण करते हैं तो उनके सब कारज शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं । स्मरण से तत्काल ही प्रभु मन में विराजते हैं ।
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रांम नांम रस परम सिधि, रांम नांम रस जोग ।
कहि जगजीवन रांम रस, रांम सिरै३ रस भोग ॥८८॥
(३. सिरै=श्रेष्ठ)
संत जगजीवन जी कहते हैं कि राम नाम आनंद ही परम सिद्धि है जो सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं । और यह ही योग है जो प्रभु से जोड़ता है । यह ही सब भोगों में श्रेष्ठ है ।
(क्रमशः)

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