शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

*श्री रज्जबवाणी, साँच चाणक का अंग १४*

 
🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू पद जोड़ै साखी कहै, विषय न छाड़ै जीव ।*
*पानी घालि बिलोइये तो, क्यों करि निकसै घीव ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
================
सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
साँच चाणक का अंग १४
निराश रहै अरु नगरन१ सौं हित२,
देखि महंतन माया जु त्यागी ।
टोपी रु कोपी३ की नहिं कछु मन,
प्रीति प्रचंड बजाज हुं लागी ॥
अतिगति४ ध्यान धनाढ्य सौ कीजिये,
लोग सुनाय न कोडी हु मांगी ।
हो रज्जब रिंद५ कपट्ट छिपावत,
साधन को सब दीसत नागी६ ॥२॥
देखो, इन माया त्यागी महंतों को, ऊपर से तो निराश का दंभ करते हैं और हृदय में शहरों१ से प्रेम२ करते हैं ।
टोपी और कौपीन३ लेने की मन मन में कुछ भी इच्छा नहीं है फिर भी बजाजों से तीव्र प्रीति करते हैं ।
धनाढ्यों का अत्याधिक४ ध्यान करते हैं और लोग सुनाते हैं कि उन्होंने एक कौड़ी भी नहीं मांगी ।
हे सज्जनों ! ये स्वच्छंद५ लोग अपने कपट को छिपाते हैं किंतु सच्चे संतों को तो इनकी ये बातें सार६-हीन ही भासती हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें