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*दादू देह जतन कर राखिये, मन राख्या नहीं जाइ ।*
*उत्तम मध्यम वासना, भला बुरा सब खाइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)संसार में किस प्रकार रहना चाहिए*
अनेक ब्राह्म भक्त आये हैं । यह देखकर श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं - "ब्राह्मसभा है या शोभा ? ब्राह्मसभा में नियमित उपासना होती है, यह बहुत अच्छा है, परन्तु डुबकी लगानी पड़ती है । केवल उपासना या व्याख्यान से कुछ नहीं होने का । ईश्वर से प्रार्थना करनी पड़ती है, जिससे भोग-आसक्ति दूर होकर उनके चरण-कमलों में शुद्धा भक्ति हो ।
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"हाथी के दिखाने के दाँत और होते हैं तथा खाने के दाँत और । बाहर के दाँत शोभा के लिए है, परन्तु भीतर के दाँतों से वह खाता है । इसी प्रकार भीतर कामिनी-कांचन का भोग करने पर भक्ति की हानि होती है ।
"बाहर भाषण आदि देने से क्या होगा ? गीध बहुत उँचे पर उड़ता है, परन्तु उसकी दृष्टि रहती है सड़े हुए मुर्दों की ओर । आतशबाजी 'फुँस' करके पहले आकाश में उठ जाती है, परन्तु दूसरे ही क्षण जमीन पर गिर पड़ती है ।
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"भोगासक्ति का त्याग हो जाने पर देह-त्याग होते समय ईश्वर की ही स्मृति आयगी । और नहीं तो इस संसार की ही चीजों की याद आयगी - स्त्री, पुत्र, गृह, धन, मान, इज्जत आदि । पक्षी अभ्यास करके राधा-कृष्ण रटता तो है, परन्तु जब बिल्ली पकड़ती है तो 'टें-टें' ही करता है ।
“इसीलिए सदा अभ्यास करना चाहिए - उनके नाम-गुणों का कीर्तन, उनका ध्यान, चिन्तन और प्रार्थना - जिससे भोगासक्ति छूट जाय और उनके चरणकमलों में मन लगा रहे ।
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"इस प्रकार के भक्त-गृहस्थ संसार में नौकरानी की तरह रहते हैं । वे सब कामकाज तो करते हैं, परन्तु मन देश में पड़ा रहता है । अर्थात् मन को ईश्वर पर रखकर वे सब काम करते हैं । गृहस्थी करने से ही देह में कीचड़ लगती है । यथार्थ भक्तगृहस्थ 'पाँकाल' मछली की तरह होते हैं, पंक में रहकर भी देह में कीच नहीं लगता ।
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“ब्रह्म और शक्ति अभिन्न हैं । उन्हें माँ कहकर पुकारने से शीघ्र ही भक्ति होती है, प्रेम होता है ।”
यह कहकर श्रीरामकृष्ण गाने लगे –
गाना - (भावार्थ) –
“श्यामा के चरणरूपी आकाश में मेरा मनरूपी पतंग उड़ रहा था । पाप की जोरदार हवा से धक्का खाकर उल्टा होकर गिर गया .......” ।
गाना - (भावार्थ) –
“ओ माँ ! तुम्हें यशोदा नीलमणि कहकर नचाती थी । ऐ करालवदनि, उस भेष को तूने कहाँ छिपा दिया है ? ....”
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श्रीरामकृष्ण उठकर नृत्य कर रहे हैं और गाना गा रहे हैं । भक्तगण भी उठे ।
श्रीरामकृष्ण बार बार समाधिमग्न हो रहे हैं । सभी उन्हें एकदृष्टि से देख रहे हैं और चित्रवत् खड़े हैं ।
डाक्टर दोकौड़ी समाधि कैसी होती है इसकी परीक्षा करने के लिए उनकी आँखों में उँगली डाल रहे हैं । यह देखकर भक्तों को विशेष क्षोभ हुआ ।
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इस अद्भुत संकीर्तन और नृत्य के बाद सभी ने आसन ग्रहण किया । इसी समय केशव कुछ ब्राह्म भक्तों के साथ आ उपस्थित हुए । श्रीरामकृष्ण को प्रणाम कर उन्होंने आसन ग्रहण किया ।
राजेन्द्र - (केशव के प्रति) - बड़ा सुन्दर नृत्य-गीत हुआ ।
ऐसा कहकर उन्होंने श्री त्रैलोक्य से फिर गाना गाने के लिए अनुरोध किया ।
केशव - (राजेन्द्र के प्रति ) - जब श्रीरामकृष्णदेव बैठ गये हैं, तो कीर्तन किसी भी तरह नहीं जमेगा ।
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गाना होने लगा । त्रैलोक्य तथा ब्राह्म भक्तगण गाना गाने लगे ।
गाना - (भावार्थ) –
"मन, एक बार हरि बोलो, हरि बोलो, हरि बोलो । हरि-हरि कहकर भवसागर के पार उतर चलो । जल में, थल में, चन्द्र में, सूर्य में, आग में, वायु में, सभी में हरि का वास है । यह भूमण्डल ही हरिमय है ।"
श्रीरामकृष्ण तथा भक्तों के भोजन के लिए व्यवस्था हो रही है । वे अभी भी आँगन में बैठकर केशव के साथ बातचीत कर रहे हैं । राधाबाजार में फोटोग्राफरों के यहाँ गये थे - यही सब बातें ।
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श्रीरामकृष्ण - (केशव के प्रति हँसते हुए) - आज मशीन से फोटो खींचना देख आया । वहाँ पर देखा कि सादे काँच पर फोटो नहीं उतरता, काँच के पीछे काली लगा देते हैं, तब फोटो उतरता है । उसी प्रकार कोई ईश्वर की बातें तो सुनता जा रहा है, पर इससे उसका कुछ नहीं होता, फिर उसी समय भूल जाता है । यदि भीतर प्रेम-भक्तिरूपी काली लगी हुई हो तो उन बातों की धारणा होती है । नहीं तो सुनता है और भूल जाता है ।
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अब श्रीरामकृष्ण दुमँजले पर आये । सुन्दर कालीन के आसन पर उन्हें बैठाया गया । मनोमोहन की माँ श्यामासुन्दरी देवी परोस रही हैं । राम आदि खाते समय वहाँ पर हैं । जिस कमरे में श्रीरामकृष्ण भोजन कर रहे हैं, उस कमरे के सामनेवाले बरामदे में केशव आदि भक्तगण खाने बैठे हैं । बेचु चटर्जी स्ट्रीट के 'श्यामसुन्दर' देवमूर्ति के सेवक श्री शैलजाचरण मुखोपाध्याय भी वहाँ पर उपस्थित हैं ।
(क्रमशः)
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