सोमवार, 17 मार्च 2025

साँच चाणक का अंग १४

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*दादू माया कारण मूंड मुंडाया, यहु तौ योग न होई ।*
*पारब्रह्म सूं परिचय नांहीं, कपट न सीझै कोई ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ भेष का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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साँच चाणक का अंग १४
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चाल ले चोर की बोलिबो साधु को, 
ऐसे न साधु को बोलि विकायगो । 
हंस की बोली सु सीखी जु काग ने, 
तो व कहा कछु हंस कहायगो ॥
पोथी को पानो लह्यो जड़ पंथि ने, 
तो सब शास्त्र क्यों शोध१ में आयगो । 
पक्षी को पंख धर्यो नर के शिर, 
रज्जब सो न आकाश को जायगो ॥११॥
यदि काक पक्षी भांति भांति हंस की बोली सीख ले तो क्या वह कुछ हंस कहा जायेगा ? 
मूर्ख पथिक ने मार्ग में चलते समय पुस्तक का पाना हाथ में ले लिया तो क्या उसके विचार१ में सब शास्त्र आ जायेगा ? 
मनुष्य के शिर पक्षी का पंख धर दिया जाय तो भी वह उड़कर आकाश में नहीं जा सकता । 
वैसे ही जिसका बोलना साधु का सा और व्यवहार चोर का सा हो तो ऐसा नर के वचन साधु के समान नहीं बिक सकते अर्थात आदर नहीं पाते । 
(क्रमशः) 

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