🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१. गुरुदेव का अंग ५३/५६*
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*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१. गुरुदेव का अंग ५३/५६*
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षट सत सहश्र इकीस है, मनका स्वासो स्वास ।
माला फेरै राति दिन, सोहं सुन्दरदास ॥५३॥
श्रेष्ठ माला का जप : विद्वज्जन प्रमाणित करते हैं कि प्रत्येक मनुष्य प्रत्येक दिन रात में २१६००श्वास लेता है । साधक को चाहिये कि वह प्रत्येक श्वास को माला का मणियाँ समझकर उसी पर राम नाम का स्मरण करे । उसके लिये यही श्रेष्ठ 'मालाजप' है ॥ ५३॥ [तुल०: "स्वासै स्वास संभालतां इक दिन मिलि है आइ ।"- श्रीदादूवाणी, २/६]
ज्ञान तिलक सोहै सदा, भक्ति दई गुरु छाप ।
ब्यापक विष्णु उपासना, सुन्दर अजपा जाप ॥५४॥
श्रेष्ठ तिलक : साधक को अपने ललाट पर, गुरु द्वारा प्रदत्त अनन्या प्रेमा भक्ति की अमिट छाप को ही, 'तिलक' समझना चाहिये ।
अजपा जाप : महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - उस सर्वव्यापक निरञ्जन निराकार की निरन्तर उपासना (भक्ति) ही श्रेष्ठ 'अजपा जाप' है ॥५४॥
सुन्दर सूता जीव है, जाग्या ब्रह्म स्वरूप ।
जागन सोवन तें परै, सद्गुरु कह्या अनूप ॥५५॥
गुरूपदेश की विशेषता : यहाँ जीव की स्थिति स्वप्नावस्था के समान है, और ब्रह्म की स्थिति जाग्रदवस्था के समान । श्रीसुन्दरदासजी का कथन है कि हमारे सद्गुरु ने स्वप्न एवं जाग्रदवस्था के भी आगे की अनुपम स्थिति का उपदेश किया है ॥५५॥
सुन्दर समुझै एक है, अन समझै कौं द्वीत ।
उभै रहित सद्गुरु कहै, सो है बचनातीत ॥५६॥
अज्ञानी ब्रह्म एवं जीव को द्वैत(भिन्न) समझता है और ज्ञानी एक(अद्वैत) समझता है । परन्तु सद्गुरु इस द्वैत, अद्वैत अवस्था से ऊपर(दोनों से भिन्न) वचनातीत (वर्णनातीत = अनिर्वचनीय) स्थिति का उपदेश करते हैं ॥५६॥
(क्रमशः)
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