*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*॥आचार्य गरीबदासजी ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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*= नाथों का मान मर्दन =*
एक समय एक नाथों की मंडली मौजमाबाद में आई थी । उन्होंने गरीबदासजी को भी निमंत्रण देकर बुलवाया । गरीबदासजी जब अश्व पर चढे हुये वहां पहुँचे तो एक नाथ ने उनसे कहा - आपके गुरु दादूजी ने तो कहा है -
दादू सब ही गुरु१ किये, पशु पक्षी वनराय ।
तीन लोक गुण पंच से, सब ही मांहिं खुदाय ॥
उक्त वचन से सूचित होता है - दादूजी ने तो पशु पक्षियों को भी गुरु माना है और यह अश्व पशु ही है । इस पर आप बैठते हैं तो अपने दादागुरु पर ही आपका बैठना सिद्ध होता है ।
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यह सुनकर गरीबदासजी ने उस नाथ संत को कहा - आपको दादूजी महाराज के उक्त वचन का अर्थ समझ में नहीं आया है । जो इस वचन में दादूजी महाराज का तात्पर्य है सो आप ध्यान से सुनेंगे तब आपको उक्त साखी का अर्थ समझ में आयेगा । इस का अर्थ यह है - पशु, पक्षी, वन पंक्ति आदि सभी उस महान्१ मेरे गुरु के रचे हुये हैं । तीन गुण और पंचभूतों से आदि सभी में ईश्वर निमित्त कारण चेतन तथा उपादान कारण माया रुप से विद्यमान है, और कारण ही उपास्य है, कार्य नहीं । यह अर्थ न समझकर आपने अपनी कल्पना से अर्थ किया है वह विद्वान संतों को कैसे मान्य हो सकता है ? उक्त अर्थ सुनकर वे नाथ संत मौन रहे ।
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कहा भी है -
“गरीबदासजी असवार लख, करी खेचरी नाथ ।
अर्थ फेरि उत्तर दियो, रहे राम रंग साथ ॥ ”
फिर गरीबदासजी मौजमाबाद से नारायणा दादूधाम को आने लगे तब एक नाथ ने उनके घोडे की गति रोक दी, वह वहां ही खडा रह गया, आगे चलाने पर भी नहीं चल सका तब गरीबदासजी जान गये कि इस सामने खडे हुये नाथ ने इसकी गति रोक दी है । फिर गरीबदासजी ने ‘सत्यराम’ मंत्र बोलकर घोडे के कंधे पर एक थप्पी मार कर कहा - चल । इतना कहते ही घोडा शीघ्र गति से चल दिया । तब नाथों ने सोचा गरीबदासजी है तो करामाती ।
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