*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*॥आचार्य गरीबदासजी ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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*= गरीब गंगा =*
गरीबदासजी महाराज एक समय कोट ग्राम के पास चाखा नामक स्थान में ठहरे हुये थे और उस समय एक पंडित के साथ तीर्थ तथा संतों के विषय में कुछ विचार चल रहा था । पंडित ने कहा - संत भी तीर्थों में जाते हैं । गरीबदासजी ने कहा - तीर्थ भी संतों के पास आ जाते हैं । पंडित ने कहा - यदि इस समय आपके पास यहां गंगा जी प्रकट हो जायें तब तो मैं आपका कथन सत्य मान सकता हूँ ।
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इतना कहते ही वहां जल प्रवाह रूप से गंगा जी प्रकट हो गई । फिर उस जल प्रवाह का नाम गरीब गंगा प्रसिद्ध हो गया । सुनते हैं पर्व के दिन यात्रियों का मेला भी गरीब गंगा पर लगता है । कहा भी है -
“मानत हैं भल तीर्थ भी, संतन का उत्कर्ष ।
प्रकटी गरीब दास हित, गंगा जी सह हर्ष ॥ १४ ॥द्द.त.९॥
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उक्त गंगा पर एक समय ग्रीष्म ॠतु में एक संत प्रात: काल तीन बजे स्नान करने आये थे । उस दिन वहां का एक ठाकुर रात्रि को गंगा पर ही रह गया था । संत स्नान करके कौपीन धो रहे थे, तब उस ठाकुर ने संतजी को पूछा - आप कहाँ रहते हैं ? ठाकुर का उक्त प्रश्न सुन कर संत कौपीन को वहां ही छोडकर वहां से विचर गये ।
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फिर ठाकुर ने प्रात: काल सूर्योदय होने पर गरीबगंगा के आस - पास रहने वाले एक व्यक्ति से पूछा - यहां स्नान करने प्रात:तीन बजे कौन संत आते हैं ? उसने कहा - एक दादू पंथी संत प्रतिदिन ही तीन बजे प्रात: काल स्नान करने यहां आते हैं । किन्तु वे किसी से बोलते नहीं हैं । ठाकुर ने कहा - मैंने उनसे पूछा था आप कौन हैं ? पर उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर भी नहीं दिया और कौपीन भी यहां छोड गये ।
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उस व्यक्ति ने कहा - वे भजनानन्दी अन्तर्मुख रहने वाले संत हैं, किसी बोलते नहीं हैं । उन की कौपीन जहां वे छोड गये हैं वहां ही रहने दो, वे कल स्नान करने आयेंगे, तब ले जायेंगे । इस कथा से सूचित होता है कि गरीबगंगा का स्नान करना उच्चकोटि के संत भी अच्छा मानते हैं ।
गरीबदासजी महाराज एक समय कोट ग्राम के पास चाखा नामक स्थान में ठहरे हुये थे और उस समय एक पंडित के साथ तीर्थ तथा संतों के विषय में कुछ विचार चल रहा था । पंडित ने कहा - संत भी तीर्थों में जाते हैं । गरीबदासजी ने कहा - तीर्थ भी संतों के पास आ जाते हैं । पंडित ने कहा - यदि इस समय आपके पास यहां गंगा जी प्रकट हो जायें तब तो मैं आपका कथन सत्य मान सकता हूँ ।
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इतना कहते ही वहां जल प्रवाह रूप से गंगा जी प्रकट हो गई । फिर उस जल प्रवाह का नाम गरीब गंगा प्रसिद्ध हो गया । सुनते हैं पर्व के दिन यात्रियों का मेला भी गरीब गंगा पर लगता है । कहा भी है -
“मानत हैं भल तीर्थ भी, संतन का उत्कर्ष ।
प्रकटी गरीब दास हित, गंगा जी सह हर्ष ॥ १४ ॥द्द.त.९॥
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उक्त गंगा पर एक समय ग्रीष्म ॠतु में एक संत प्रात: काल तीन बजे स्नान करने आये थे । उस दिन वहां का एक ठाकुर रात्रि को गंगा पर ही रह गया था । संत स्नान करके कौपीन धो रहे थे, तब उस ठाकुर ने संतजी को पूछा - आप कहाँ रहते हैं ? ठाकुर का उक्त प्रश्न सुन कर संत कौपीन को वहां ही छोडकर वहां से विचर गये ।
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फिर ठाकुर ने प्रात: काल सूर्योदय होने पर गरीबगंगा के आस - पास रहने वाले एक व्यक्ति से पूछा - यहां स्नान करने प्रात:तीन बजे कौन संत आते हैं ? उसने कहा - एक दादू पंथी संत प्रतिदिन ही तीन बजे प्रात: काल स्नान करने यहां आते हैं । किन्तु वे किसी से बोलते नहीं हैं । ठाकुर ने कहा - मैंने उनसे पूछा था आप कौन हैं ? पर उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर भी नहीं दिया और कौपीन भी यहां छोड गये ।
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उस व्यक्ति ने कहा - वे भजनानन्दी अन्तर्मुख रहने वाले संत हैं, किसी बोलते नहीं हैं । उन की कौपीन जहां वे छोड गये हैं वहां ही रहने दो, वे कल स्नान करने आयेंगे, तब ले जायेंगे । इस कथा से सूचित होता है कि गरीबगंगा का स्नान करना उच्चकोटि के संत भी अच्छा मानते हैं ।
(क्रमशः)
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