*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*॥आचार्य गरीबदासजी ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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गरीबदासजी महाराज ने अपनी उक्त साखियों का अच्छी प्रकार प्रवचन करके बादशाह को सुनाया । इससे बादशाह जहांगीर को अति प्रसन्नता हुई । फिर उसने कहा - अब तो मैं आज्ञा चाहता हूँ, बहुत समय हो गया है । आपके भजन - साधन में भी विध्न नहीं होना चाहिये । कल फिर आकर आप का सत्संग करूँगा ।
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ऐसा कहकर बादशाह ने गरीबदासजी को प्रणाम किया और अपने सामन्तों के साथ अपने डेरे पर आ गया और शारीरिकक्रियाओं से निवृत होकर रात्रि को विश्राम किया फिर दूसरे दिन गरीबदासजी से मिलने का समय ज्ञात करा कर गरीबदासजी के पास गया । प्रणाम करके सामने बैठ गया ।
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फिर हाथ जोड कर बोला - भगवन् ! प्राणी के कर्म बन्धन का नाश किस साधन से होता है ? यही आप मुझे बताने की कृपा करें । कारण - यह बात संत ही यथार्थ रूप से बता सकते हैं ।
बादशाह का उक्त प्रश्न सुनकर गरीबदासजी ने कहा -
कर्म कटे दर्शन किये, समझे सांचा ब्रह्म ।
सत्संगति उपकार यह, भागे कलि विष भर्म ॥
उक्त साखी का विस्तार से प्रवचन करके गरीबदासजी मौन हो गये ।
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तब बादशाह जहांगीर ने कहा - भगवन् ! मैं यह तो समझ गया कि - सत्य स्वरुप परमात्मा के स्वरुप को विचार द्वारा समझ कर उसका आत्म रुप से साक्षात्कार किया जाता है, तब सभी संचित कर्म नष्ट हो जाते हैं किन्तु प्राणियों की रुचि भिन्न भिन्न होती है । परमात्मा का उन प्राणियों के साथ कैसा व्यवहार होता है ? अब आप इसी को मुझे समझाने की कृपा करें ।
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बादशाह का उक्त प्रश्न सुनकर गरीबदासजी बोले -
समता रूपी राम है, सब से एकै भाइ ।
जा कै जैसे प्रीति है, तैसी करे सहाइ ॥
भजन भाव समान जल, भरि दे सागर पीव ।
जैसी उपजे तन तृषा, ते तो पावे पीव ॥
(क्रमशः)
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