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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१. गुरुदेव का अंग २९/३२*
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बेद नृपति की बंदि मैं, आइ परें सब लोइ ।
निगहबांन पंडित भये, क्यों करि निकसै कोइ ॥२९॥
इस संसार में सभी बुद्धिमान् जन वेद रूप नृपति(राजा) के बन्दी(बन्धक) बने हुए हैं । अर्थात् वेदबोधित कर्मकाण्ड के आचरण में फंसे हुए हैं । उस के लिये विवेकी जनों को गम्भीर विचार करना पड़ता है कि इस भ्रमजाल से कैसे मुक्त हुआ जाय ! ॥२९॥
सद्गुरु भ्राता नृपति कै, बेडी काटै आइ ।
निगहबांन देखत रहैं, सुन्दर देहिं छुडाइ ॥३०॥
यह तो भला कहो उस वेदनृपति के भ्राता स्वरूप हमारे सद्गुरु का कि उन ने सज्ज्ञानोपदेश देकर हम को उस भीषण कर्मबन्धन से मुक्त कर दिया ॥३०॥
सुन्दर सद्गुरु शब्द का, ब्यौरि बताया भेद ।
सुरझाया भ्रम जाल तें, उरझाया था बेद ॥३१॥
गुरूपदेश : महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - हमारे पूजनीय गुरुदेव ने साक्षात् पधार कर हम को 'राम' शब्द का क्रमशः विवरणसहित सदुपदेश किया कि उस के प्रभाव से सुदृढ कर्मबन्धन से मुक्त हो पाये; अन्यथा वेद के उस कर्मकाण्ड ने हम को भवचक्र में ऐसा उलझा दिया था कि हम जैसे दीन हीन प्राणियों का उस से मुक्त होना असम्भव ही था ॥३१॥
वेद मांहिं सब भेद हैं, जानें बिरला कोइ ।
सुन्दर सो सद्गुरु बिना, निरवारा नहि होइ ॥३२॥
क्योंकि वेद के कर्मकाण्ड की उस पद्धति में ऐसी भेदवादी गुत्थियाँ उलझी हुई हैं कि सद्गुरु के अतिरिक्त अन्य किसी के द्वारा उन(उलझी हुई गुत्थियों) से मुक्ति दिलाना हमें तो असम्भव ही लगता है ॥३२॥
(क्रमशः)
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