*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
५ आचार्य जैतरामजी महाराज
.
एक फकीर का आना
.
एक समय आचार्य जैतराज जी की महिमा सुनकर एक फकीर उनके दर्शन करने नारायणा दादूधाम में आया और दरवाजे के बाहर ही बैठ गया । भोजन के समय भोजन करने उसको बुलाया, तब उसने कहा - जैतरामजी आवें तो ही भोजन करने चलूं । जैतराम जी महाराज को उसके हठ का ज्ञान हुआ तब वे उसके पास आये ।
.
उनको आते देखकर वह उठा और उनके मृग छाला बिछा कर उनको प्रणाम किया और मृग छाला पर बैठने का संकेत किया कि मृगछाला पर विराजिये । तब जैतराम जी महाराज के संकेत से उनकी सेवा करना रुप कार्य करने वाले टहलुवे ने मृगछाला पर गद्दी बिछा दी । उस पर जैतराम जी महाराज विराज गये । और कहा - भोजन क्यों नहीं करते हो ? फकीर ने कहा - ॠद्धि दिखाओ तो भोजन करुंगा ।
.
जैतराम जी महाराज ने पूछा - क्या ॠद्धि देखना चाहते हो ? फकीर बोला - ५००) मोहर दिखाओ । महाराज ने कहा - मंगवा देते हैं । फकीर ने कहा - मंगवाना नहीं हैं, इसी क्षण यहां ही दिखाओ । तब जैतराम जी महाराज ने कहा - अच्छा यहां ही मन मांगा लो फिर जैतरामजी महाराज ने अपनी गद्दी के नीचे ५००) मोहरें निकाल कर फकीर के सामने रख दीं ।
.
फकीर महाराज के चरणों में पड गया और बोला - महाराज आप को धन्य हैं । मैंने जैसा सुना था वैसा ही आप का पक्षपात रहित सरलतापूर्ण व्यवहार और ॠद्धि मैंने आज अपने नेत्रों से देख लिया है । आप महान् संत हैं । वे मोहरे मैं आप पर ही निछावरकरता हूं । मैं मोहरों के लिये नहीं आया था । आपके दर्शन करने ही आया था ।
.
आप के दर्शन और व्यवहार से मेरा रोम रोम प्रसन्न हुआ है । इस समय के आनन्द का वर्णन तो मैं किसी प्रकार कर ही नहीं सकता हूं । फिर महाराज ने कहा अब तो भोजन करो । फकीर ने हाथ जोडकर कहा अवश्य भोजन करुंगा । फिर भंडारी ने उसे भोजन कराया । भोजन करके वह विचर गया । इसी प्रकार सभी जातियों के लोग महाराज के दर्शन करने आते थे और आनन्दित होकर ही जाते थे ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें