शनिवार, 13 सितंबर 2025

४. बंदगी कौ अंग १३/१६

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*४. बंदगी कौ अंग १३/१६*
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जौ बंदा हाजिर खडा, करै धणी का कांम । 
सांई कौं भूलै नहीं, सुन्दर आठौं यांम ॥१३॥ 
जो सेवक स्वामी की सेवा में सदा सर्वथा सन्नद्ध रहता है उसकी किसी भी आज्ञा को भूलता नहीं, न आठों पहर में किसी क्षण उस प्रभु को ही भूलता है ॥१३॥
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जौ यह उसका है रहै, तौ वह इसका होय । 
सुन्दर बातौं ना मिलै, जब लग आपन षोय ॥१४॥
इस प्रकार सेवा करते हुए जो सेवक स्वामी की आत्मीयता पा लेता है तब यह स्वामी भी सेवक का आत्मीय बन जाता है । केवल अन्यथा बातें करने से कार्य सिद्ध नहीं होता । जब तक अपना वृथा अभिमान नष्ट न करोगे तब तक उस प्रभु से मेल न हो पायगा ॥१४॥ [तु० - जे सांई का ह्वै रहै, तो सांई तिस का होइ – श्रीदादूवाणी ।]
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सुन्दर बंदा बंदगी, करै दिवस अरु रात । 
सो बंदा कहिये सही, और बात की बात ॥१५॥
सच्चा भक्त : महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - हम तो उसी को सच्चा प्रभु भक्त मानते हैं जो दिन रात(आठों पहर) प्रभु भक्ति में लगा रहता है । शेष भक्त(दो चार क्षण मन्दिर आदि में जाने वाले) तो हमारी दृष्टि में नाममात्र से 'भक्त' कहलाते हैं ॥१५॥
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करै बंदगी बहुत करि, आपा आंणै नांहिं । 
सुन्दर करी न बंदगी, यौं जांणै दिल मांहिं ॥१६॥
हम उसको भी सच्चा भक्त मानते हैं जो दिन रात प्रभु की भक्ति(सेवा) करता हुआ भी उस भक्ति का अभिमान नहीं करता कि मैंने इतनी भक्ति की है । अपितु उतना अधिक करने पर भी उसे हृदय में यही पछतावा रहता है कि उसने अभी तक कुछ भी भक्ति नहीं की ॥१६॥
(क्रमशः) 

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