शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

४. बंदगी कौ अंग ९/१२

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*४. बंदगी कौ अंग ९/१२*
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सुन्दर निपट नजीक है, उठै जहां थी स्वास । 
उहां हि गोता मारि तूं, सांई तेरे पास ॥९॥
वे प्रभु तो हमारे बहुत ही समीप में हैं । जिस स्थान(नाभिकमल या हृत्कमल) से हमारा श्वास उद्भूत होता है, वहीं स्थिर चित्त से गंभीरतापूर्वक उन का ध्यान किया जाय तो समझ लो उन के मिलने में विलम्ब नहीं लगेगा । इस प्रकार तुम्हारे प्रभु वे तुम्हारे समीप ही मिलेंगे ॥९॥
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सखुन हमारा मोतिये, मत खोजै कहुं दूर । 
सांई सीचे बीच है, सुन्दर सदा हजूर ॥१०॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी (भक्त को) कहते हैं - अरे भाई ! तुम हमारी इस बात(परामर्श) को मान लो कि वे प्रभु तुम्हारे समीप ही हैं । उनको कहीं दूर जा कर खोजने का प्रयास न करो । वे तुम्हारे स्वामी तुम्हारे हृदय में ही विराजमान हैं, अतः वे सदा तुम्हारे सन्मुख ही रहते हैं ॥१०॥ (ह्र्द्देशेऽर्जुन ! तिष्ठति - गीता) ।
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सुन्दर भूल्या क्यौं फिरै, सांई है तुझ मांहिं । 
एक मेक ह्वै मिलि रह्या, दूजा कोई नांहिं ॥११॥
अरे ! तूँ लोगों की बातों के बहकावे में आकर, उस प्रभु की खोज में क्यों इधर उधर भटक रहा है । वह तो तेरे हृदय में ही विराजमान है । बस, तुझे यहाँ इतना ही करना है कि तूँ उस के नामस्मरण द्वारा उसमें तन्मय(एकरस) हो जा । तब तेरा यह द्वैतभाव स्वतः मिट जायगा । (तब तुझे 'एकमेव न द्वितीयम्' का स्वतः अनुभव होने लगेगा) ॥११॥
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सुन्दर तुझ ही मांहिं है, जो तेरा महबूब । 
उस खूबी कौं जांनि तू, जिस खूबी तें खूब ॥१२॥
महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - वह तेरा प्रिय इष्टदेव(महबूब) तो तुझ में ही(प्राण या आत्मा के रूप में) समाया हुआ है । बस, तूँ उस की विशेषता समझ ले ! उस की विशेषता यही है कि जब तक वह तुझ में है तभी तक तूं इस संसार में विशेष(महत्त्वपूर्ण) है । उसके न रहने पर, लोग तुम्हें सदा के लिये उठाकर बाहर फेंक आयँगे - यही उस की विशेषता है ॥१२॥
(क्रमशः) 

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