रविवार, 14 सितंबर 2025

भेष भूषा संबन्धी विवाद

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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भेष भूषा संबन्धी विवाद 
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जैतराम जी महाराज के समय में समाज के माने हुये कुछ महानुभावों ने समाज में यह प्रस्ताव रखा कि - दादूजी महाराज डाढी मूँछ नहीं रखते थे । अत: ५२ थांभों के सभी संतों को भी डाढी मूँछ उतार देनी चाहिये । इस प्रस्ताव को लेकर उस समय समाज में भेष भूषा संबन्धी विवाद चल पडा । उस समय समाज के दो थांभे बडे सुन्दर दासोत और बनवारी दासोत संख्या में अधिक थे । 
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बनवारी दासोतों का मत था डाढी मूंछ नहीं रखना चाहिये । बडे सुन्दर दासोतों का मत था रखना चाहिये । बडे सुन्दर दासोतों ने कहा - हमारे तो सुन्दरदास जी महाराज केश रखते थे । अत: हम तो रखेगें । उतराधों ने कहा - सुन्दरदास जी महाराज पंच केश रखते थे और वस्त्र भगवां रखते थे । आप लोग भी पंच केश रखें तब तो अति सुन्दर है किन्तु आप लोग तो केवल डाढी मूँछ और बहुत कम केशों की चोटी ही रखते हैं । यह तो संतों को शोभा नहीं देता है । 
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किन्तु उस समय के बडे सुन्दर दासोत प्राय: क्षत्रिय थे और राजस्थान के क्षत्रिय उस समय डाढी मूँछ और छोटी - सी चोटी रखते थे । वही आदत उन संतों की थी । वे उतराधों के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुये । इससे समाज के दो गुट हो गये । उस समय बडे सुन्दर दासोतों में केवलराम जी मुख्य थे । उन्होंने कहा - हम तो डाढी मूँछ रखेंगे, हमारी डाढी मूँछ तुम को अच्छी नहीं लगती है तो हम तुम से अलग ही रहेंगे । क्षत्रिय स्वभाव के कारण झुकना तो वे अच्छा समझते ही नहीं थे । उलटा उक्त प्रस्ताव रखने वालों को डांट कर बोले -  
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केवल दिया सराप यह, म्हारो बढसी पूंछ ।  
उतराधा कंपित रहैं, राखें डाढी मूंछ ॥ 
केवल हृदयरामजी, ऊठ गये तत्काल ।
भैराणे गिरि जाय के, मेला किया दयाल ॥
(दौलतराम)
अर्थात् - हम डाढी मूंछ रखेंगे और हमारा पूंछ(वंश) बढेगा और तुम उतराधे हमारे वंश से कंपित ही रहोगे । यह कहकर केवलरामजी और हृदयरामजी सभा से उठकर चले गये । उनके साथ ही सब बडे सुन्दर दासोत उठ गये । यह प्रस्ताव नारायणा के मेले के आरंभ में सभा में रखा गया था । अत: बडे सुन्दर - दासोत सब नारायणा दादूधाम से भैराणे चले गये और वहां ही मेला किया । 
(क्रमशः) 

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