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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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सुन्दर - दासोतों जाने के पश्चात् उतराधों ने सभा में कहा - हमारा तात्पर्य भेद पटकने में तो नहीं था, एकता में ही था । केवलरामजी हमारे तात्पर्य को बिना समझे ही रुष्ट हो गये हैं । वे उस प्रस्ताव को नहीं मानते, सभा से उठकर जाने का क्या प्रसंग था ? फिर उनको यह कहकर बुलाया कि आप लोगों की इच्छानुसार भेष भूषा रखें किन्तु समाज के साथ तो रहैं ।
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अलग मेला करना तो समाज की फूट ही मानी जायगी और संतों में फूट होना उचित नहीं ज्ञात होगा । किन्तु उन्होंने नहीं माना । पांच वर्ष तक मेला भैराणे करते रहे । पर्वत के पास सुविधा नहीं होने से आकोदा ग्राम के पास लगर्या टीबा पर ठहरने रहे । पांच वर्ष तक यह हलचल देखकर आचार्य जैतराम जी महाराज ने बिचूण के संतों के द्वारा केवलरामजी और हृदयरामजी को पत्र भेजा और कहा - उनको समझाकर गुटबंधी तोडने का यत्न करो ।
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बिचूण के संतों ने कहा आपकी आज्ञा के अनुसार ही किया जायगा । जैतरामजी महाराज ने पत्र में लिखा था - ‘श्रीमान् केवलरामजी, हृदयरामजी को नारायणा दादूधाम से जैतराम का सत्यराम ज्ञात हो । आगे समाचार यह है कि - समाज में अशांति का वातावरण बढता जा रहा है । उसको आप ही रोक सकते हैं । उतराधों में कोई आग्रह नहीं है । आप लोग अपनी इच्छानुसार भेष भूषा रख सकते हो ।
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अब आप गुरु द्वारे नारायणा में आकर पूर्ववत सबसे मिलो गुटबंधी को तो़ड दो । गुटबंधी समाज की हित कारिणी सिद्ध नहीं हो सकेगी । श्रीदादू जी महाराज के वचनों पर ध्यान दो, वे तो कहते हैं - “दो राजी दु:ख द्वन्द्व में, सुखी न वैसे कोय ।” फिर हम व्यर्थ ही द्वन्द्वों में सुख क्यों मान रहे हैं ? अब अगले फाल्गुण शुक्ला में मेला एक स्थान नारायणा दादूधाम पर ही होना चाहिये । तब ही समाज में आनन्द की लहर चलेगी । अत: अब शीघ्र ही आप लोग आकर प्रेम पूर्वक सबसे मिलें ।
(क्रमशः)
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