सोमवार, 8 सितंबर 2025

गंगागिरि जी द्वारा पारस भेंट

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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गंगागिरि जी द्वारा पारस भेंट
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एक गंगागिरि नामक महात्मा जैतराम जी की महिमा सुनकर जैतराम जी के दर्शन करने नारायणा दादूधाम में आये और जैतराम जी महाराज के दर्शन तथा सत्संग करके अति प्रसंग हुये । फिर वे सत्संग के लिये कुछ दिन दादूद्वारे में ही ठहर गये । वहां की संत - सेवा की पद्धति देखकर तथा आगत दीन गरीबों को भोजन देना आदि रुप परोपकार देखकर गंगागिरि जी बहुत प्रसन्न हुये ।
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उनकी तपस्या द्वारा अपने इष्ट से उनकी इच्छानुसार एक पारस का टुकडा मिला था । उस पारस के टुकडे को संत सेवा व परोरकार के लिये जैतराम जी के भेंट करने का विचार अपने मन में करने लगे और एक दिन जैतराम जी महाराज को आसन पर विराजे देखकर गंगागिरि उनके पास गये प्रणाम करके उस पारस के टुकडे को उनकी भेंट करते हुये बोले - महाराज ! यह पारस पत्थर है । इससे यहां की संत सेवा और परोपकार का कार्य सदा चलता रहे, इसीलिये मैं यह आपको भेंट कर रहा हूं । 
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जैतराम जी ने पूछा - इसमें क्या विशेषता है ? तब वहां एक भंडारी लोहे की चाबियां पटककर किसी कार्य के लिये गया था । गंगागिरि ने वे चाबियां उठाकर कहा - देखिये इसकी विशेषता । फिर उनको पारस से छुवाया तब वे सोने की हो गई । यह देखकर जैतरामजी महाराज ने कहा - यही विशेषता है ? गंगाराम ने कहा - यह कम है क्या ? लोहे को सोना तो इसके बिना अन्य कोई बना ही नहीं सकता । 
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जैतराम जी ने कहा - यह लोहे को ही सोना बनाता है अन्य को तो नहीं बना सकता । फिर जैतराम जी महाराज ने कहा - अच्छा आप देखिये ऐसा कहकर अपने नीचे के गलीचे के चारों कोणों पर संगमरमर के पत्थर के मोगरों को उठाकर कम से कम अपने ललाट के स्पर्श करके कहा देखो ये किसके बने हुये हैं ? गंगागिरि जी ने देखा कि - ललाट के स्पर्श से पूर्व वे पत्थर के थे किन्तु ललाट के स्पर्श होते ही वे दिव्य - सुवर्ण के हो गये हैं । 
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यह आश्‍चर्य रुप करामात देखकर गंगागिरि ने प्रणाम करके कहा - महाराज आपकी लीला अपार है । आप तो नजर दौलत हैं, आपको पारस की क्या आवश्यकता है । अब मैं आपकी महान् शक्ति को पहचान गया हूं । मेरी पारस देने की धृष्टता अब आप क्षमा ही करेंगे । ऐसा कहकर प्रणाम किया और अपने आसन पर चले गये । फिर इच्छानुसार दादूद्वारे में निवास करके विचर गये । 
(क्रमशः) 

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