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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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योगी संत हांडी भिडंग जी का आना
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एक समय निम्बार्क संप्रदाय के महान् योगिराज संत हांडी भिडंग जी के मन में भावना उठी कि - आचार्य जैतराम जी की परीक्षा लेनी चाहिये कि वे कितनी शक्ति रखते हैं । इसके लिये उन्होंने अपनी योग शक्ति से अपना एक दुर्बल ब्राह्मण का सा रुप बनाया और हाथ में एक झोली उठा कर नारायणा दादूधाम में प्रवेश किया ।
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जैतरामजी महाराज के पास पहुँचे तथा प्रणाम करके बोले - भगवन् ! मैं दरिद्री दुर्बल ब्राह्मण हूं । मेरी कन्या का पाणिग्रहण संस्कार चाहता हूं किन्तु मैं जिस प्रकार दान लेना चाहता हूं उस प्रकार देने वाला मुझे कोई मिला ही नहीं । अब मैं आपकी आशा करके आपके पास आया हूं । जैतराम जी महाराज उनको अपनी योग शक्ति से पहचान तो गये फिर भी बोले - आप कैसे लेना चाहते हैं ? वैसे ही आपको दिया जायगा ।
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योगिराज हांडी भिडंग जी ने कहा - आप किसी से मंगवावें नहीं और इसी क्षण मैं चाहता हूं उतना धन मुझे दें तो ही मैं लूंगा । उनकी बात सुनकर आचार्य जैतराम जी ने वहां बैठे ही अपने दोनों हाथों की अंजली बनाई और बोले, लो, हांडी भिडंग जी ने अपनी झोली आगे करी तो उनको मोहरों की अंजली झोली में पडती हुई दिखाई दी ।
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कहा भी है - जब इच्छा हो संत की, तिहि क्षण लक्ष्मी आय ।
जैत जीवनी में यही, बहु थल देखा जाय ॥२०७ द्द.त.११ ॥
यह देखकर संत हांडी भिडंग जी परम संतुष्ट हुये और अपने रुप में आकर बोले - आपको धन्य है, जैसा मैंने सुना था वैसा ही आज आप का प्रभाव प्रकट रुप में अपने नेत्रों से देख रहा हूँ । आप संत समाज की कीर्ति का विस्तार करने वाले महान् संत हैं । आज आपके दर्शन से मैं अपने को धन्य मानता हूँ ।
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उक्त प्रकार उनके वचन सुनकर आचार्य जैतरामजी महाराज ने कहा - यह तो दादूजी महाराज का प्रताप है । इस दादूधाम पर सभी को संतोष मिलता है । अत: आप को भी प्रसन्नता होनी ही चाहिये थी । अब आप भोजन करिये । फिर हांडी भिडंग जी ने भोजन प्रसाद इच्छानुसार किया पश्चात् विचर गये । उक्त प्रकार आचार्य जैतराम जी महाराज के पास दर्शनार्थ अनेक उच्च कोटि के संत आते ही रहते थे और सभी ही उनके दर्शन सत्संग से तृप्त होकर जाते थे ।
(क्रमशः)
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