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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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अथ अध्याय ६
८ आचार्य निर्भयरामजी
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निर्भयरामजी महाराज आचार्य चैनरामजी महाराज के शिष्य ही थे और जाति के पाराशर ब्राह्मण थे । कहा भी है -
“पाराशर का गोत में, निर्भय राम अवतार ।
निर्भय बैठा तखत पै, जप दादू करतार ॥”
(दौलतराम)
नारायणा दादूधाम की गद्दी की परंपरा प्राय: ऐसी ही मिलती है कि पूर्वाचार्य के शिष्यों में से जिसका निर्देश पूर्वाचार्य कर जायें उसी को गद्दी पर बैठाया जाता था । चैनरामजी महाराज महान् योगी महात्मा थे । उन्होंने अपनी योग शक्ति से निर्भयरामजी का भविष्य प्रथम ही जान लिया था कि निर्भयराम होनहार महान् संत है और गद्दी के योग्य हैं ।
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अत: निर्भयरामजी का ही निर्देश कर गये थे कि - निर्भयराम को ही गद्दी पर बैठाना । फिर अपने गुरुदेव के ब्रह्मलीन होने के तीसरे दिन वि.सं. १८३७ चैत्र कृष्णा ११ को निर्भयरामजी को जैतरामजी महाराज की बारहदरी में गद्दी पर बैठाया गया और गद्दी पर बैठाने का जो दस्तूर होता है वह सब किया गया । निर्भयरामजी का आचार्य काल तो अष्टमी से माना जाता है ।
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राजा और आचार्यों की नियुक्ति पूर्व राजा और पूर्वाचार्यों के देहान्त के दिन ही हो जाती है । गद्दी पर कभी दो दिन और कभी तीन दिन के पश्चात् बैठाने का विवरण मिलता है । इससे आचार्यों के गद्दी के काल की आयु में कहीं दो दिन और कहीं तीन दिन का अन्तर मिलता है । अत: पूर्वाचार्य के देहान्त के दिन से ही मानने में यह अन्तर नहीं रहेगा । यह सभी आचार्यों के विषय में ध्यान रखना चाहिये । इस बात को बिना समझे भ्रांति हो सकती है । समझने से भ्रांति को अवकाश नहीं रहेगा ।
(क्रमशः)

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