रविवार, 26 अक्टूबर 2025

*७. काल चितावनी कौ अंग १७/२०*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*७. काल चितावनी कौ अंग १७/२०*
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सुन्दर संक रती नहीं, बहुत करै उदमाद । 
काल अचानक आइहै, करि है गुरदाबाद ॥१७॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - अरे भाई ! हमारी इस बात में कुछ भी सन्देह न कर तथा अधिक उन्माद करना छोड़ दे; क्योंकि तेरी मृत्यु कभी भी (अचानक) आयगी और तुझ को नष्ट भ्रष्ट कर चली जायगी ॥१७॥
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सुन्दर क्यौं चेतै नहीं, सिर पर साँधै काल । 
पल मैं पटकि पछारि हैं, मारि करै बेहाल ॥१८॥
अरे भाई ! तुम सावधान क्यों नहीं होते कि तुम्हारी मृत्यु तुम्हारे शिर पर लक्ष्य साध कर खड़ी है । यह क्षणमात्र में तुम को पछाड़ कर भूमि पर पटक देगी, तथा मारते पीटते विकल (बेहाल) कर देगी ॥१८॥
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सुन्दर काहे कौं करै, थिर रहणें की बात । 
तेरै सिर पर जम खडा, करै अचानक घात ॥१९॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - अरे प्राणी ! तूं यहाँ स्थिर रहने की चिन्ता करना छोड़ दे; क्योंकि तेरे सिर पर तेरी मृत्यु खड़ी है । वह तुझ पर कब अकस्मात् आक्रमण कर देगी - यह कोई नहीं जानता ॥१९॥
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सुन्दर गाफिल क्यौं फिरै, साबधान किन होय । 
जम जौरा तकि मारि है, घरी पहरि मैं तोय ॥२०॥
तूं उन्मत्त हुआ इधर उधर क्यों घूम रहा है । सावधान (सचेत) क्यों नहीं होता । यह बलवती मृत्यु कुछ ही घड़ी या क्षण में तुझको अपना लक्ष्य बना कर मारने वाली हो है ॥२०॥
(क्रमशः)

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