मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

चैन पधारत पंथ में

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~ 
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दोहा - चैन पधारत पंथ में, चली सु चैन तरंग ।
भेद भ्रांति विग्रह सभी, हुये शीघ्रतर भंग ॥१॥
समय समय पर निमंत्रण, आवें जावें चैन ।
सबहिं सुखद आचार्य के, सुने सु मीठे बैन ॥२॥(नारायणा)
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अब समाज में एकता होने से परस्पर प्रेम का व्यवहार होने लगा और समय समय पर अपने पूज्य आचार्य को अपने अपने स्थानों पर निमंत्रण देकर बुलाने लगे । यथा योग्य सेवा करते हुये आचार्य जी के सुमधुर उपदेश सुनने लगे । रामस्थान के राजा लोग भी नारायणा दादूधाम के आचार्य को समय समय पर बुलाते थे और दादूवाणी के गंभीर उपदेश श्रवण करते थे । 
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मुंशी देवीप्रसाद द्वारा लिखित - “मरदुम सुमारी राज मारवाड” तीसरा हिस्सा में लिखा है - “नराणे के महन्तों का जयपुर और जोधपुर में यह कुरब है कि खास रुक्कों से तो बुलाते हुये आते हैं और उनको लेने को सरदार और दीवान वगैरा राजधानी के दरवाजे के बाहर तक जाते हैं ।
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डेरे पर महाराजा साहिब भी उनसे मिलने को पधारते हैं ।” उक्त लेख से ज्ञात होता है कि उक्त बडे राजाओं के समान ही सब छोटे राजा भी नारायणा दादूधाम के आचार्य को बुलाते थे और उक्त प्रकार ही समादर करते थे । वि.सं. १८२४ में जयपुर नरेश सवाई माधोसिंहजी प्रथम ने नारायणा दादूधाम के आचार्य चैनरामजी महाराज को निमंत्रण देकर जयपुर बुलाया था तब शिष्य मंडल के सहित आप जयपुर पधारे ।
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जयपुर नरेश ने आपका राजकीय सत्कार साम्रगी से स्वागत किया था और स्वयं महाराज के पास जाकर अपनी पूर्व नरेशों की रीति के अनुसार ही स्वर्ण मुद्रा भेंट की थी । और जितने दिन रहे उतने दिन सर्व प्रकार सेवा का प्रबन्ध किया और जाते समय नारायणा दादूधाम के सदाव्रत के लिये धनराशि दी थी । 
(क्रमशः)  

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